डॉ0 साहब
बहुत अच्छे हैं। डॉ0 साहब पहले बीमारी पूछते हैं फिर कई सारे टेस्ट
कराने को बोलते हैं, तब चिकित्सा करते हैं। जबकि वैद्य जी हाथ पकड़कर
ही बीमारी बता देते थे। पर डॉ0 साहब बहुत अच्छे हैं। डॉ0 साहब
के पास एमआरआई है, सीटी स्कैन है, ईसीजी है, अल्ट्रासाउंड
है, एक्सरे है,
कुछ नहीं तो स्टेथोस्कोप तो हर
गली-मोहल्ले के डॉ0 के पास है और वैद्य जी...वैद्य जी के पास तो बस
नाड़ी ज्ञान ही है। इसलिए डॉ0 साहब बहुत अच्छे हैं। डॉ0 साहब
के पास महँगी-महँगी दवाई हैं जो रसायनों से बनी हैं और चमकदार पैकिंग में भी आती
हैं जबकि वैद्य जी तो खुले आसमान के नीचे बेमतलब की गहनता से उपयोगी बूटी ढूँढ़ते
हैं। डॉ0 साहब के यहाँ पर्चा लगाकर घण्टों इंतजार करने
के बाद नम्बर आता है पर डॉ0 साहब के पास ए0सी0 है। इसलिए इंतजार भी मायने
नहीं रखता। वैद्य जी के पास क्या है वो गूलर की लकड़ी का स्टूल जिसके पायों पर वो
हर साल बढ़ई से कील ठुकवाकर पिछले 10 सालों से चला रहे हैं। ऊपर से उनकी छोटी सी
अलमारी में बेतरतीब रखीं वो काँच की शीशियाँ जिनमें किसी बड़ी ब्रांड का नाम तक
नहीं लिखा। ऊपर से वैद्य जी के पास कोई डिग्री भी तो नहीं तो उनकी दवाई का क्या
भरोसा। आखिर डॉ0 साहब के पास बड़ी सी डिग्री है जिसकी फोटो स्टेट
उनके केबिन में शीशे में जड़ी हुई रखी है। डॉ0
साहब को डिग्री लिए जितने साल बीते जा
रहे हैं उतनी ही उनकी फ़ीस बढ़ती जा रही है। फ़ीस भले ही हो पर परहेज से तो बचत है।
वैद्य जी तो चीनी तक खाने को मना करते हैं। बताओ तो जुबान मीठी करने वाली कोई चीज
बुरी हो सकती है भला। वैद्य जी के पास तो दवाई नहीं परहेज की दुकान है। इसीलिए तो
डॉ0 साहब ही अच्छे हैं। माना कि डॉक्टरी दो-चार
शताब्दी ही पुरानी है जबकि वैद्य हजारों साल से चले आ रहे हैं। पर डॉक्टरी में
अंग्रेजियत का एहसास है। जबकि वैद्य जी तो कड़वे नीम के फायदे बता-बताकर कान तक
कड़वे कर देते हैं। इसीलिए डॉ0 साहब ही अच्छे हैं। सफेद कोट में क्या लगते हैं
डॉक्टर साहब और एक वैद्य जी हैं जो खद्दर पहने चर्र-चर्र करती कुर्सी पर बैठकर
मरीज का हाल सुनते हैं। सरकार को भी डॉक्टरों की अहमियत पता है इसीलिए तो मेडिकल
कॉलेजों और दवा की दुकानों पर ध्यान दे रही है। अगर सरकार वैद्य जी की बातें सुने
तो सारी जमीनों पर जड़ी-बूटी वाले पेड़-पौधे ही लग जाएँ और रहने को मकान तक न मिले।
डॉक्टर साहब और लोगों को भी रोजगार देते हैं। तभी तो सिरदर्द की ऐसी गोली देते हैं
जिसके साइड इफेक्ट से किडनी खराब हो जाती है और किडनी वाले डॉक्टर साहब का भला
होता है फिर किडनी वाले डॉक्टर साहब इतने डायलिसिस कराते हैं कि आदमी की नींद उड़
जाए और एक बार जिसने नींद की गोली खायी वो तो मेडिकल स्टोर से पैर ही नहीं हटा
पाता और ये वैद्य जी तो सबको रोज चार तुलसी की पत्ती खाने को कहते हैं जिससे कोई
रोगी ही न हो। वैद्य जी की कितनी छोटी सोच है न। इनकी मानें तो कितने ही भूखे मर
जाएँ। जबकि डॉक्टर साहब वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से काम करते हैं। इसीलिए डॉक्टर
साहब बहुत अच्छे हैं।
लेखक
प्रांजल सक्सेना
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