सांयकाल 07:00
बजे हमने
घर पहुँचकर डॉरवेल बजाई । दरवाजा खुला , दरवाजे के एक ओर थके – हारे , शक्ल से बेचारे
दिखने वाले हम थे
। पैण्ट से आधी बाहर निकली शर्ट , गले में ढीली
पड़ी टाई और पसीने की बूँदों
से नहाया हुआ
नजर का चश्मा सब
मिलकर बयां कर रहे थे कि
मजदूरों के अलावा भी कुछ लोग मेहनत
की रोटी खाते
हैं । वहीं दरवाजे के
दूसरी ओर हमारी सेठानी
हाथ में हथेली का
दुगुना एक पच्चीस हजारी मोबाइल लिए
हुए । हमारी
बेचारगी भरी सूरत
देखने का समय सेठानी के
पास नहीं था क्योंकि
उनकी आँखें
मोबाइल पर लगी हुई थीं
। दरवाजा तो खुल चुका था पर हम अभी भी घर के बाहर ही
खड़े थे क्योंकि
बड़े शहर की
उच्च मध्यवर्गीय पत्नी मोबाइल
पर कुछ टाइप
कर रही थी और हमारी
हिम्मत न थी कि सेठानी से
कह दें कि दरवाजे से हटकर टाइप कर
लो । खैर 1 मिनट बाद आदरणीया
पत्नी जी का टाइपिंग कार्य रूका और वो मोबाइल पर
ही नजरें गड़ाए
हुए मुड़ीं और
सामने बने सोफे
पर जाकर बैठ गईं । हमें लगा मानो अंदर आने
का टिकट मिल गया
है , मंद चाल से अंदर आए ।
जब रहा ही
नहीं गया तब बोले
– “ क्या हर समय व्हाट्सएप्प पर लगी रहती
हो ? कभी मेरी ओर
भी ध्यान दिया
करो । ”
सेठानी बोलीं – “ ऐसा है जी दिमाग मत खराब
करो । मैं घर
के सारे काम
निपटाकर 01:30 बजे फ्री हो
जाती हूँ फिर शाम
तक मुझे कोई
काम नहीं है
। आपका तो कुछ निश्चित नहीं है अपनी
पोई पक्की करने
के लिए जने कहाँ – कहाँ
घूमते रहते हैं , कभी 5 बजे , कभी 7
बजे ,
कभी
9 बजे
घर आते हो । तब तक ठलुआ बैठूँ क्या ? खाली बैठने
से वजन बढ़ जाता है
और मैं अपनी
फिगर बिल्कुल खराब न करने वाली
। ”
हम
बोले – “ पर अब तो घर आ गया हूँ
न अब तो मोबाइल
को रखो । ”
सेठानी बोलीं –
“ क्यों
रखूँ ? सब काम आप ही के हिसाब से
चलेगा क्या ? दिखता नहीं ‘ ठलुओं की फौज
’ ग्रुप में चैट
कर रही हूँ
। अभी शिखा ने चुटकुला भेजा है
, उसे
पढ़कर खीसें निपोरने
वाला स्माइली भेजना है
। प्रियंका जी ने गजल लिखी है
उस पर ताली
वाला स्माइली भेजना है
। कोमल की शादी आने वाली है । ग्रुप में साड़ी
का रंग मैच
करना है । इतना सारा काम
है । मैं नहीं करूँगी
तो कौन करेगा ? आपका आने का कोई निश्चित
समय हो तो
उस समय व्हाट्सएप्प न चलाऊँ पर
जब आने – जाने का समय निश्चित समय न होगा तब तो मैं अपने हिसाब से
ही सोफा छोड़ूँगी
, आपके हिसाब से
नहीं ये समझ लीजिए
। ”
हम बोले– “ अरे ! पर......”
बीच में ही टोकते हुए सेठानी बोलीं – “ बोलिए मत एक मिनट अभी विशाखा ने
अभी
एक लिपिस्टिक की
नई फोटो में टैग
किया है उसे लाइक कर
दूँ । ”
1 मिनट 10
सेकण्ड बाद हम बोले – “ सुनो ”
सेठानी ( झल्लाकर ) बोलीं – “
अरे
! क्या है ? ”
हम
बोले – “ वो मैं , मैं । ”
सेठानी बोलीं – “ क्या ,
मैं
, मैं
मुझसे इस समय मटर पनीर बनाने
की आशा भी मत करना
। भूख लगी हो दोपहर की दाल फ्रिज में
रखी है खा लो । ”
हम
बोले – “ नहीं दाल नहीं वो
.......”
सेठानी सोफा छोड़कर
खड़ी हो जाती
हैं फिर
कहती हैं – “ दाल नहीं तो
क्या ? आपके ज्यादा पर
निकल आए हैं
। दाल में प्रोटीन होता है वही खाओ
। मक्खन वाला पराठा नहीं
मिलेगा और
फैट बढ़ाना है क्या
? ”
हम
बोले – “ नहीं मैं परांठा
नहीं माँग रहा था
। आज महिला दिवस
है न तो मैं उपहार
में तुम्हारे लिए आईफोन
लाया था । ”
सेठानी की आँखें फोन
छोड़कर हमारी ओर
गईं । पति के थके हुए चेहरे में कोई
रोचकता न महसूस करते हुए
उसके हाथों में
सफेद रंग के डिब्बे पर
हॉलमार्क को देखकर सेठानी उछल पड़ीं । मूल्यवान उपहार देखकर अचानक से
ही पति भी मूल्यवान लगने लगा ।
सेठानी
बोलीं – “ सच्ची आप कितने
अच्छे हैं और मैं आपको
दाल खिला रही
थी । अब तो मैं खूब सारा व्हाट्सएप्प और फेसबुक चला
सकती हूँ । ”
बहुत
सारा सुनकर हम
चिंतित हो गए । कुछ
सलाह देना चाहते
थे सेठानी को
पर एक ही
शब्द निकल पाया – “ तुम...... ”
सेठानी
ने भृकुटि तानते हुए कहा
– “ हाँ मैं । ”
हम मन की बात को छुपाते हुए क्रोध पर
बेशर्मी की हँसी लपेटते
हुए बोले – “ बहुत बुद्धिमान
हो । ”
सेठानी बोलीं – “ हाँ वो तो हूँ । ”
उधर व्हाट्सएप्प ग्रुप
में Sethani left the group
दिशा ( ग्रुप एडमिन ) – “ ये सेठानी फिर
चली गई । ”
मनु – “ कोई बात नहीं दीदी
आ भी जाएगी
। ”
पर्सनल में दिशा – “ इन बरेली वालों का
दिमाग खराब है
जब देखो तब
ग्रुप छोड़ जाते
हैं फिर एडमिन जोड़ती फिरे
। एडमिन न हो गई कम छात्रसंख्या वाले विद्यालय की मास्टरनी
हो गई । जैसे वो घर –
घर जाकर बच्चे बुलाती है
, वैसे
ही कांटेक्ट पकड़ – पकड़कर
इन्हें
ग्रुप में ऐड करते
रहो । ”
मनु – “ दद्दा ,
इन
बरेली
वालों की तो कहो मत । सामने तारीफ तो
मजबूरी में करनी
पड़ती है । पर कसम से हैं सबकी
सब नखरेवाली । ”
हमने
सेठानी से कहा – “ अरे ! ग्रुप क्यों लेफ्ट कर दिया
? ”
सेठानी बोलीं – “ आप लेफ्ट , राईट के
चक्कर में न पड़ें । ये औरतों की
बात है । ग्रुप में कई दिन पड़े रहो
तो टीआरपी कम हो जाती
है । ग्रुप में भी उन्हीं औरतों
की इज्जत
होती है जो इश्यू बना सकें
। चर्चा में रहना जरूरी होता है
। अब कल जब सब पूछेंगे तो इठलाकर
जाऊँगी ग्रुप में । फिर थोड़ी देर
बाद सबको बताऊँगी कि आपने मुझे आईफोन
दिया है । ”
हम
बोले – “ तुम औरतों को
समझना मुश्किल है । ”
सेठानी बोलीं – “ औरतों ?
और
कौन औरत है आपके जीवन
में ? और आप किन –
किन औरतों को समझने
की कोशिश कर
रहे आजकल ? ”
हम
बोले – “ कोई न है ।
बस ऐसे ही जुमला
बोल दिया । ”
सेठानी बोलीं – “ ठीक है , ठीक है । आज आप आईफोन
लाए हैं , इसलिए छोड़ रही
हूँ । अगली बार औरतों शब्द
कहा न तो समझ लेना
। ”
5 सेकण्ड बाद सेठानी
ने
पूछा – “ भूख लग रही है ? ”
हम आशान्वित होकर बोले
– “ हाँ । ”
सेठानी बोलीं – “ तो रुकिए , कम से कम एक घण्टा तो
लगेगा । ”
हम
बोले – “ ठीक है । ”
हमने कमरे में जाकर
जूते उतारे और आराम
से बनियान बरमूडा
पहनकर लेट गए
। एक घण्टे बाद सेठानी ने कहा –
“ यहाँ कैसे लेटे हैं
? ”
हम
बोले – “ आप ही ने तो कहा था कि एक घण्टे बाद
खाना मिलेगा । सो मैं यहाँ
आकर लेट गया । पर आपने नए
कपड़े पहनकर इतना मेकअप क्यों
किया है ? ये सब करने
क्यों
बैठ गईं खाना
कब तक बनाओगी
अब ? ”
सेठानी ऊँगली
उठाते हुए गर्दन टेढ़ी
करके कटु दृष्टि
से हमारी
ओर देखते हुए बोलीं – “ देखो मिस्टर , ऐसा है आज ही मैंने
नेलपेन्ट वाली डिस्प्ले पिक्चर लगाई है
। कईयों ने पर्सनल
में आकर तारीफ भी की है । अब इनको खराब करने के
लिए मैं रसोई में तो जाने से
रही । इसलिए चुपचाप ढंग
के कपड़े पहनिए और
चलिए खाना खाने
किसी होटल पर
। ”
हम
बोले – “ पहले ही बता देतीं तो
कपड़े ही न बदलता । ”
सेठानी
ने कहा –
“ ओहो
! तो पहले न बताया
तो क्या ? अब कपड़े बदल लीजिए । आप भी आलसी
हो गए हैं और एक बात समझ
लीजिए आपको दाल
न खानी पड़े
, इसलिए
आपको होटल पे
ले जा रही हूँ । समझ लीजिए मैं आपकी
कितनी चिंता करती
हूँ । ऐसी पतिव्रता पत्नी आपको कहीं न मिलने वाली
जान लीजिए ।
”
हम
सिर झुकाकर बोले – “ हाँ समझ गया
। ”
हम कपड़े पहनकर सेठानी
के साथ होटल
पर गए और खाना खाकर
11:00 बजे तक लौटे
। हमने कहा – “ बड़ा थक गया
। ”
सेठानी
बोलीं – “ आदमी लोग पता
नहीं किस बात
पर थक जाते
हैं । हम महिलाओं से पूछो पहले
घर के काम
निपटाते हैं फिर सारा दिन नेलपेंट , ड्रेस शॉपिंग , फेसबुक ,
व्हाट्सएप्प में अपना पूरा योगदान देती हैं । एक पल की फुर्सत नहीं हमें । एक औरत की जिंदगी घर
संसार में ही बीत जाती है
। पर आप आदमी कभी
न समझेँगे । ”
हम
बोले – “ सच में समझना मुश्किल
है , चलो सोने चलें । ”
सेठानी बोलीं – “ बस खाना खाकर
आए और सोने
चले , इसीलिए आपका पेट
निकल आया अब
। आप जाइए मुझे नहीं सोना
अभी । ”
हम
बोले – “ फिर ? ”
सेठानी बोलीं – “ अरे ! फिर क्या । अभी मुझे नया
फोन मिला है
इसमें सारे कांटेक्ट डालने हैं । नेट चालू करना
है , नए एप्पस डालने
हैं । मैं जा रही हूँ बालकनी में बैठकर ये सारे
काम निपटाने । ”
हम
बोले – “ ठीक है जाओ
। ”
हम बिस्तर पर लेट गए , सेठानी के बालकनी
में जाते ही
हमने फोन निकालकर अपने
मित्र टिल्लू को कॉल लगाई – “ हैलो टिल्लू । ”
टिल्लू बोला – “ हैलो ,
जोरू
के गुलाम , प्लान
सक्सेसफुल हुआ ? ”
हम
बोले – “ अरे ! सक्सेसफुल नहीं डबल सक्सेसफुल । अब नए फोन में उलझी रहेगी
अगले 2 – 3 महीने । ”
टिल्लू
बोला – “ ये मारा पापड़
वाले को । यानि अब प्राइम
टाइम पर भी डेली सोप
के बजाय भाभी
मोबाइल में ही उलझी रहेगी
और तेरे आईपीएल देखने
में कोई रोक
नहीं । ”
हम
बोले – “ हाँ और तेरी पार्टी
में कोई रोक
नहीं , कल मिलना रेस्टोरेंट
में । ”
टिल्लू बोला –
“ चल
अच्छा है , अबकि बार नहले पर
दहला मार ही दिया तूने
। भाभी जानबूझकर
अपने धारावाहिक के बहाने
आईपीएल नहीं देखने
देती थी तुझे
। वो तुझे
हर बात पर बस दाबना
चाहती है । ”
हम
बोले – “ अबे ! दहला नहीं ,
दहला
तो हर बार वही फेंकती है
और मुझे दहला भी
देती है । मैं तो गुलाम
हूँ , केवल उसे ही लगता है
कि मैं नहला
और वो दहला
बनकर हर बार मेरे ऊपर है
। पर मैं भी गुलाम
बनकर चुपके से
दहले को पीट ही देता
हूँ । ”
फोन काटकर एक मुस्कान
के साथ हम वापिस बिस्तर पर जाकर
सो जाते
हैं ।
प्रांजल सक्सेना
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