बिल्कुल मेरे जैसी बच्ची हो ।
तुम मेरे साथ खेलती हो ,
सिर पर हाथ फेरती हो ।
अच्छी-अच्छी चीजें खिलाती हो ,
अच्छी-अच्छी बातें सिखाती हो ।
कभी मुझे प्यार से बहलाती हो ,
तो कभी गोद में ही सुलाती हो ।
मम्मी-पापा भी मुझे करते प्यार ,
पर सबसे अच्छा आपका दुलार ।
मेरा गाल छूकर हँसाती हो ,
मुझे गुलगुली कर जाती हो ।
मेरे बालों को सहलाती हो ,
मुझे चूमकर खुश हो जाती हो ।
जब सड़क पर कोई डॉगी आता ,
या कोई पिग्गी गुजरकर जाता ।
मैं हऊ - हऊ हूँ चिल्लाती ,
आप डंडे से उसे भगातीं ।
हम पेट पकड़कर हँसते हैं ,
हम कितनी मस्ती करते हैं ।
दादी आज मुझे हलुआ खिलाओ ,
दाल और चावल भी बनाओ ।
कम मिर्च की चटनी बनाओ ,
चाय में बिस्कुट घोलकर खिलाओ ।
जब थोड़ी बड़ी हो जाऊँगी ,
मैं तुम्हारे पैर दबाऊँगी ।
जो कभी तुमको खांसी आई ,
मैं खिलाऊँगी तुमको दवाई ।
जो तुमको देखना होगा समाचार ,
मैं झट से ले आऊँगी अख़बार ।
दादी तुम हो मेरी गुड़ की भेली ,
दादी हम दोनों हैं पक्की सहेली ।
दादी उवाच
अच्छा - अच्छा मेरी प्यारी गुड़िया ,
बातें तेरी पिपररमेंट की पुड़िया ।
सूटर पहनकर मंकी कैप लगाती है ,
दादी के साथ धुप्पा में बैठ जाती है ।
चिड़ियों को देख शोर मचाती है ,
कभी यूँ ही खूब हँस जाती है ।
कभी पकड़े चश्मा मेरा , कभी पकड़े आँचल ,
सीधी - सादी है कहाँ , तू तो है बड़ी चंचल ।
पूरे दिन तू मुझे अपने पीछे भगाती है ,
पर्दे में छिप - छिपकर , तू बड़ा मुस्काती है ।
सोने और नहाने में करे तू सौ - सौ नखरे ,
फिर भी ये शरारतें मुझे बिल्कुल भी न अखरें ।
हलुआ , पूड़ी , दही , पनीर तेरे लिए बनाऊँगी ,
दाँत निकलने पर सब कुछ तुझे खिलाऊँगी ।
पर अभी तो तू छोटी - सी हपली है ,
बड़ी सुंदर - सुंदर सी तितली है ।
चिड़िया जैसी चोंच है तेरी , चुहिया जैसी नाक ,
घर में सबसे छोटी है पर जमाए सब पर धाक ।
दिन भर देखती हूँ ये शरारतें सारी ,
इन शरारतों पर जाती वारि - वारि ।
यूँ ही तेरी ओर जो नजर चली जाए ,
मेरे होंठ हँसे बिना रह न पाए ।
तेरी भोली सूरत पर बातें हैं चटपट ,
तू बनती मासूम जबकि है बड़ी ही नटखट ।
तू अटक - अटक कर चलती है ,
कभी गिरती है , कभी उठती है ।
कभी तुझे जो चोट लग जाती ,
मेरी तो आँखें ही भर आतीं ।
जब निन्नी तुझे आती है ,
मेरे सीने से लग जाती है ।
मुझे भाती तेरी हर अठखेली ,
हाँ हम दोनों हैं पक्की सहेली ।
रचनाकार
प्रांजल सक्सेना
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