हाँ तो मित्रों , पिछले
दिनों असहिष्णुता का
मुद्दा जोरों पर था
। अब हम
ठहरे स्वघोषित व्यंग्यवादी
लेखक हमने सोचा
कि इस मुद्दे
पर कुछ लिखा
जाए । स्वयं में तो
बुद्धि है नहीं
हममें कि कुछ
लिख पाएँ । हम कभी
तो किसी कद्दू
से बातचीत लिख
देते हैं तो
कभी किसी मुर्गे
से बातचीत का
वर्णन कर देते
हैं । परंतु असहिष्णुता के
मुद्दे पर किसी
कद्दू और मुर्गे
से भी बात
न कर सकते
क्योंकि ये कमबख्त
न तो हिंदू
होते हैं न
ही मुसलमान तो फिर पकड़ें
किसे ।
आईडिया ! किसी
सार्वजनिक स्थल पर
चलते हैं जहाँ
हिंदू और मुसलमान
दोनों मिलें । पर यदि हमने सार्वजनिक
स्थल हिंदू – मुस्लिम सम्बंधी
कोई मुद्दा उठाया
और वो आपस
में लड़ गए तो सबसे
पहले गर्दन तो
हमारी पकड़ी जाएगी
न । क्यों ? अरे ! भई क्योंकि हम नेता न
हैं जो दोनों
को लड़ाकर भी
अपना लाभ कर
लेता है । हम तो
मूर्ख शिरोमणि हैं ।
सार्वजनिक
स्थल पर जाने
से तो कोई
लाभ मिल नहीं
रहा पर इस
मुद्दे पर चर्चा
भी हमें करनी
है फिर क्या
करें ?
हाँ मिल
गया मार्ग ऐसा
करते हैं कि किसी ऐसी दुकान
पर जाते हैं
जहाँ पर दोनों
आते हों और
वो दुकान वाला
बातूनी हो । उसके पास
दोनों के विचार
होंगे वही हमें
इस मुद्दे पर
जनराय से परिचित
कराएगा । पर किसकी दुकान
पर जाएँ ? हाँ
किसी बातूनी नाई
की दुकान पर
चलते हैं । पर बाल
तो हमारे बढ़े
नहीं हैं और
दाढ़ी । ओहो ! पता नहीं
दाढ़ी सवेरे – सवेरे काहे
बना ली हमने । अब
ये बगल के
बाल तो नाई की दुकान
पर कटवाएँगे नहीं । भई
हमें तो लज्जा
आएगी अपनी कमीज
चार लोगों के
सामने उतारने पर ।
फिर
किसके पास जाएँ ? हाँ
दर्जी के पास
चलते हैं वो
भी बहुत बातूनी
होते हैं और
कमीज से लेकर
पठानी सूट सब
सिलते हैं । वो अवश्य
हमारे काम के
होंगे । पर दर्जी के
पास जाने के
लिए पहले कपड़ा
खरीदना होगा और
उसके बाद दर्जी
को सिलवाने के
पैसे भी देने
होंगे यानि कि हो गया
हजार – बारह सौ का
खर्चा बैठे – बिठाए । न भैय्या
इतने महँगे में तो जनराय
न जाननी हमें । फिर
किसके पास जाएँ ? नाई
हो गया , दर्जी हो
गया और कौन , और
कौन ?
हाँ मिल
गया चायवाला । किसी चायवाले
के पास चलते
हैं ,चाय तो
आदमी प्रतिदिन पी
सकता है और
प्रतिदिन में भी
कितनी बार भी
पी सकता है । न
कोई रोक न
कोई टोक ऊपर
से वहाँ दिन
भर लोग आते – जाते
रहते हैं । उसे इस
विषय में जनराय
का अवश्य पता
होगा ।
इस
समय जाड़े का
भी समय है । शरीर
की ठण्डी भी
कम होगी और 8 –
10 रूपए
में हमें जनराय
भी पता चल
जाएगी । अभी निकालते हैं
द्विचक्रवाहिनी और जाते
हैं किसी चाय
वाले के पास । पर
अभी कैसे जाएँ
रात के 11
बजे हैं । इस समय
तो मुझ जैसे
कमसिन आधे सठियाए
हुए की इज्जत
खतरे में पड़
सकती है । कोई बात
नहीं प्रात:काल मे
चलेंगे ।
फिर
हम निद्रा के
आगोश में चले गए
। हालाँकि उस रात
हमारे विचलित मन
ने निद्रा देवी
को बड़ा सताया । पता
नहीं इस मन
का भी क्या
लोचा है । जब विचलित
होता है तो
निद्रा देवी के
लिए डण्डा लेकर
खड़ा रहता है । अंतत: कभी सोते , कभी
जगते , कभी ऊँघते
वो रात कट
ही गई । प्रात:काल 5
बजे हम उठ गए
। हमने सोचा कि अभी
जाने का क्या
लाभ अभी तो
दुकान पर कोई होगा
भी नहीं । फिर मस्तिष्क
में विचार आया
कि हमें दो – चार
ग्राहकों का करना
भी क्या है ? प्रतिदिन सौ
ग्राहकों से मिलने
वाले दुकानदार से
ही जनराय जान
लेंगे । उठते ही हमने
शौचालय की सेवा
ली और बिना
नहाए , मुँह धोए
अपनी द्विचक्रवाहिनी पर
चढ़े और चल
दिए किसी चायवाले
की तलाश में ।
थोड़ी
दूर चलने के
बाद हमने सड़क
पर एक दुकान
देखी – बंसी टी स्टॉल । लो
जी बन गया
काम । अब तो इसी
के यहाँ चाय
पिएँगे और जनराय
जानेंगे । सुबह के 05:30
हुए थे और दुकान का
शटर अभी भी
बंद था । हमने जोर
से शटर पर हाथ मारा , शटर
नहीं खुला । हमने पुन:
शटर पर हाथ
मारा । अबकि अंदर से
ध्वनि आई – “ ऐ ! दन्नू जाकर
देख कौन पीट
रहा है शटर
इतनी सुबह – सुबह ? कोई
कुत्ता हो तो
देना घुमाकर एक
गिट्टी । ”
कुत्ता ?
नहीं हम
कुत्ते तो बिल्कुल
नहीं हाँ छोटे
हाथी अवश्य हैं । पर
दुकान , नहीं , नहीं स्टॉल मालिक हमारे छोटा
भीमकाय शरीर के
दर्शन के अभाव
में हमें कुत्ता
समझ रहा है । कहीं
दुकान खोलते ही
हम पर पत्थर
न चला दे । इसलिए
हम बोले – “ अरे ! हम पीट
रहे हैं शटर । हम
कुत्ते नहीं हैं न ही हमें पत्थर
खाना है बल्कि
चाय पीनी है । ”
हमने अपना पत्थर
से चोट खाना
बचा लिया था । शटर
खुला और एक 14 –
15 वर्ष
का किशोर अँगड़ाई
लेते हुए बाहर आया
और
बोला – “ तुम हो जिसे सुबह पौने
छ्ह बजे चाय
पीनी है ? ”
हम अपना कॉलर
ऊपर करते हुए
बोले – “ हाँ हम ही
हैं वो वीर पुरुष
जो
घर से 2
किमी दूर सवेरे – सवेरे
चाय पीने आया है
। ”
किशोर ने हमें
अंदर आने को
कहा फिर कंधे
पर पड़े अँगोछे
से एक कुर्सी – मेज
पोंछी और बैठने
को कहा । तभी एक
चुटियाधारी लाल अँगोछाधारी
कुर्ता – पायजामा पहने लगभग
45 वर्षीय चंदला
व्यक्ति आया और
बोला – “ नमस्ते सेठजी ! क्या लेंगे
आप ? ”
हम बोले – “ चाय
लेंगे हम तो । पर
कुछ भूख भी
लग रही है
कुछ नाश्ते को
भी बना दो । ”
उस व्यक्ति ने
उस किशोर से कहा
– “ दन्नू जल्दी से
रात के बर्तन
माँज मैं नहाकर
आता हूँ । ”
दन्नू ने कहा – “ बंसी
काका , अभी
न धो पाऊँगा
बर्तन । पहले पखाना जाना
है अभी तो
उठा हूँ । ”
बंसी ने कहा – “ अरे ! तो पहले
उधर ही हो आ ।
जो काम
रूक नहीं सकता
वो पहले कर ले ।
”
फिर उस व्यक्ति
यानि कि बंसी
ने हमसे कहा – “ सेठजी
ऊ का है
न हमारी दुकान
सुबह 7 बजे
खुलती है । इसलिए अभी
सब कुछ अस्त – व्यस्त
है । ये दन्नू बस
आ जाए फारिग
होकर तो मैं
फटाफट चाय बना
देता हूँ । वैसे आप
नाश्ते में क्या
लेंगे ? ”
हम लगभग एक
घण्टे पूर्व शौचालय
की सेवा ले
चुके थे इसलिए उदर में
हाथी कूद ही रहे थे । कुछ
खाना तो था ही
। हम बोले – “ क्या – क्या मिलेगा
नाश्ते में ? ”
बंसी बोला – “ बंसी
के स्पेशल समोसे , जिसे खाकर आप
ऊँगलियाँ चाटते रह
जाएँ वो जलेबी , इठलाती – बलखाती फिगर वाली
सेम और रेडीमेड
खस्ते । ”
हमने सोचा ये
सेम तो बहुत
हल्की होती है किलो
भर भी खा
लेंगे तब भी
डकार न आने की
। खस्ता खाकर क्या
करेंगे हमारी स्वयं
की ही हालत
इतनी खस्ता रहती
है । इसलिए अब दो
ही विकल्प बचे , हम बोले – “ हम
समोसा भी खाएँगे
और जलेबी भी । ”
हमारी बात सुनकर
बंसी का माथा
कुछ वक्र रेखाओं
की चउदर में
आ गया , बोला – “ दोनों
खाएँगे ? चलिए
ठीक है सेठजी
वो का है
न कि एक
चीज बनाने में
कम समय लगता
और दो चीज
बनाने में ज्यादा
समय लगेगा । खैर हम अभी मैदा
बूँद देते हैं
और दन्नू के
आते ही फटाफट
चाय बना देंगे । ”
हम बोले – “ हाँ
तो समय लो न ।
हमारे पास अगर
किसी चीज की
कमी नहीं है
तो वो है समय
। ”
मन ही मन
हमने कहा कि
वैसे भी जितना
समय हम दुकान
पर बैठेंगे उतनी
ही अधिक जनराय
हमें पता चलेगी । हमने
सोचा अब इनसे
असहिष्णुता के विषय
में जनराय पूछनी
चाहिए । पर ऐसे सीधे
जनराय पूछना सही
होगा ? चलो ऐसा
करते हैं कि
पहले दो – चार इधर – उधर
के प्रश्न पूछते
हैं फिर आएँगे
जनराय पर । पर इधर – उधर
की बात करें
कौन सी ? हम
सोच ही रहे
थे कि दन्नू
अंदर से आया
और लग गया
बर्तन धोने । हमने सोचा
बंसी ऊपर की
सीढ़ी है इसे बाद में
पकड़ा जाए । पहले दन्नू
को बातों में लउदरते हैं ।
हम
बोले – “ तो
दन्नू तुम पढ़ते
हो ? ”
दन्नू बोला – “ पढ़ता
था पर एक
दिन स्कूल के
मैनेजर ने प्रिंसीपल
को नौकरी से
निकाल दिया क्योंकि
सभी बच्चों की
फीस सख्ती से
नहीं ले पा
रहे थे । उसी दिन
मैंने पढ़ाई छोड़ दी
। ऐसी पढ़ाई से
भी क्या फायदा
जब जलालत जिंदगी
से न जाए । जब
जलालत से ही
जीना है तो पढ़ने में
दिमाग क्यों लगाएँ ? ”
लयो मार दिया
व्यवस्था पर तमाचा
एक किशोर ने । हमने
दूसरा प्रश्न किया – “ अच्छा
तुम्हें ये काम
अच्छा लगता है ? ”
अपने लम्बे बिखरे
बालों को खुजाकर
पहले तो दन्नू
ने हमें घूरकर
देखा फिर बोला – “ अक्सर
अच्छा लगता है
पर जिस दिन
कोई टैम से
पहले जगा देता
है तो माँ
कसम बहुत गुस्सा
आती है । ”
हम समझ गए
उसका संकेत हमारे
द्वारा समय से
पहले जगाने पर था
। किसी निर्धन की
नींद खराब करना
शेर को घायल
करने सरीखा होता
है । क्योंकि ये वैसे
भी मेहनत करके
सोते हैं तो
इन्हें संतोषप्रद नींद
भी आती है । अब
दन्नू से बात
करना ठीक न था ।
अब बंसी
को पकड़ते हैं पर इससे
भी पहले इधर – उधर
की बात करते
हैं ।
पर बात क्या
करें ? कोई
समसामयिक मुद्दा पकड़ते
हैं जिससे पता
भी चल जाएगा
कि बंसी अपडेट
रहता भी है
या नहीं । हम बोले – “ बंसी
एक बात बताओ
दिसम्बर का आखिरी
चल रहा है
पर ठण्ड नहीं
पड़ रही ऐसा
क्यों हो गया ? ”
बंसी बोला – “ हा
हा हा...............का करे सेठजी ठण्ड
पड़कर भी । पहले के
जमाने में लोगों
के पास क्या
था एक अँगीठी
होती थी जिसमें
कोयला , लकड़ी
जलाकर लोग ठण्ड
दूर करते थे । अब
कोयला कमरे में
तो जलाया नहीं
जाता था । गली में
कोई एक जना
गेट पर अँगीठेऐ
जला लेता था
और चार घरों
के लोग आकर
उसी पर तापते
थे । मोहल्लेदारी की सारी
बातें वहीं हो
जाती थीं । अब सबके
पास हो गए
हीटर और एक – दूसरे
से बात करने में
रूचि भी खत्म
हो गई है । सब
हीटर जलाकर कमरे
में घुसे रहते
हैं तो भगवान
ने भी सोचा
होगा कि ठण्ड
भी क्यों पड़े । पर
फिर भी सेठजी मौसम की
मार पड़ती तो गरीब पर
ही है । ठण्ड न
पड़ी और बारिश
न हुई तो
फसल न होगी
और फसल अच्छी
न हुई तो फलेंगे
– फूलेंगे सूदखोर । खैर मौसम
कोई भी हो
बंसी का तो
एक ही काम
है कि वो
अपनी नीँबू वाली
मसाला चाय से
गर्मी में थकान
दूर करे और अदरक वाली
चाय से सर्दी
में ठण्ड भगाए । ”
दन्नू की ओर
देखकर बंसी बोला – “ ला
भगौना दे पहले
इधर चाय बनने रखूँ और
आलू छील फटाफट । सेठजी
बैठे हैं बहुत
देर से । ”
गहरा विश्लेषण था
बंसी का । ये व्यक्ति
बिल्कुल ठीक है
जनराय जानने के लिए
। चाय भी
बनने रख चुकी
है अब आ
जाना चाहिए मुद्दे
पर । हमने बहुप्रतीक्षित प्रश्न
ठोंक ही दिया – “ अच्छा
बंसी आजकल चारों
ओर एक ही
मुद्दा छाया हुआ है
असहिष्णुता । पता नहीं
कैसे फैल गई ? ”
बंसी
बोला – “ अरे ! सेठजी ये
असहिष्णुता तो कुछ
कहिए मत । बेड़ा गर्क
कर रखा है
इसने । दिन भर लोग
इसी की बात
करते हैं और
हमारी दुकान का
ये टी0वी0 भी
लोग बस समाचार
ही देखते रहते । पहले
पुराने गाने चलते
पर अब यही
असहिष्णुता चलती रहती
है । अच्छा खून पीया
है इसने । ”
हम
बोले – “ पर
फैली कैसे ये ? इतना शोर तो
तब भी न
हुआ था जब
भारत – पाकिस्तान अलग हुए थे
। ”
बंसी बोला – “ सेठजी सब बखत –
बखत की
बात है । अब हाथ
में फोड़ा निकल
आए तो भी
आदमी दुनिया भरके
काम कर सकता
है पर अगर पैर में
फोड़ा निकल आए
तो पक्का लँगड़ाएगा । वैसे इन
नेताओं का भी
जबाव नहीं अंग्रेजों
ने 70 साल
पहले जो फसल
बोई थी हिंदू – मुस्लिम में
अलगाव की उसे ये आज
तक काट रहे । किसी
का जखम देख
लें तो उस
पर मरहम लगाने
के बजाय कुरेदने
लगेंगे । ”
हाँ बिल्कुल सही विश्लेषण बंसी
हम अपने मस्तिष्क
में नोट करे
जा रहे हैं ये
सब बातें लिख
डालेंगे और अपने
को महान विश्लेषक
सिद्ध करेंगे । हमने आगे
कहा – “ वैसे बंसी हमें
लगता है कि
हिंदू – मुस्लिम के बीच
ये खाई पटना
मुश्किल है क्योंकि
इसे खोदा है
अंग्रेजों ने । अब अंग्रेजों
की तो सारी
चीजें वैसे ही
बहुत मजबूत हैं । उनके
बनाए पुल ही
देख लो कईयों
की एक्सपाइरी निकले
20 वर्ष हो गए हैं
पर फिर भी
बढ़िया चल रहे
हैं । जबकि आज के
ठेकेदार ऐसे पुल
बना रहे हैं कि
जब
तक रेलिंग लगने
का नम्बर आता
है उसमें छेद
होने लगते हैं । ”
अबकि बंसी ने
कोई उत्तर न
दिया हमें देखकर
केवल मुस्कुराए । फिर दन्नू
से कहा – “ चल
दन्नू चाय में
सब कुछ डाल
दिया है देखता
रह बस उबलकर गिरे
न । आज समोसे और
जलेबी मैं बनाऊँगा । ”
दन्नू बोला – “ पर
तुम क्यों बनाओगे ? काम सही तो
कर रहा हूँ न
। मुझे निकालने के
तो चक्कर में
न हो न । ”
बंसी बोला – “ अगर अभी
चाय पर ध्यान
न दिया तो
जरूर निकाल दूँगा
अब हट यहाँ
से । ”
अब बंसी ने
जलेबी और समोसे
बनाने की कमान
सँभाल ली थी
और मंद आँच
पर रखी चाय
की चौकीदारी दे
दी थी दन्नू
को । आलू को कढ़ाई
में डालकर बंसी
बोला – “ वैसे सेठजी एक
बात बताऊँ समय
लगता है कोई
काम करने में । अगर
काम करने वाले
को कोई काम
करने दे न
इतिहास भी बदल
जाता है । अब तीन – चार
सौ साल अंग्रेजों
ने राज किया
भारत पर । पर जब
उनको उखाड़ फेंका
हम लोगों ने तो
उनके जहर के बीज
को......”
बंसी की बात
पूरी होने से
पहले ही दन्नू
बोला – “ अरे ! जे का डाल
रहे हो आलू
में ? ”
बंसी बोला – “ तू
काम देने मोए
को मेरे हिसाब
से बस चाय
पर नजर रख । ”
दन्नू मुँह बिचकाकर
रह गया । “ सेठजी , अंग्रेजों के जहर
का बीज तो
यूँ ही खतम
हो जाए बस
उसको खाद पानी
न मिले । उजले मुखड़ों
वाले ने जो
काम किया उसे
उजले लिबास वाले
खतम करने के
बजाय बढ़ा रहे । ”
फिर 5 मिनट
ऐसे ही शांति
रही । बंसी ने 8 – 10
जलेबियाँ तलीं और
उन्हें निकालकर एक बर्तन
में रखा । दन्नू पुन:
बोल पड़ा – “ अरे ! अब जे
का कर रहे
हो सब जलेबिन
का ........”
दन्नू की बात
पूरी होने से
पहले ही बंसी
जोर से बोला – “ तू
चाय का खौला
देख पहले । ”
दन्नू ने भगौने
में चाय का उबाल देखकर
तुरंत चूल्हा बंद
किया । बंसी बोला – “ अपने
काम में ध्यान
है न मेरे
काम में अड़ँगा
लगा रहा है । जा
जाकर चाय देकर
आ सेठजी को
फिर प्लेट में
जलेबी लगा मैं
समोसे तलता हूँ
तब तक । ”
दन्नू बोला – “ ठीक
है हम काहे
अड़ँगा लगाएँगे । पर काका
तुम्हारा दिमाग जरूर
सड़ गया है
जे असहि.....सू जो
भी है उसके
चक्कर में । ”
दन्नू बार – बार क्यों
टोक रहा है
बंसी को ? ये
बंसी का प्लान
क्या है ? कहीं
ऐसा तो नहीं
कि दुकान पर
मुझे अकेला देख
कुछ मिलाकर दे
दे चाय में
और मेरी खटारा
द्विचक्रवाहिनी और सस्ता
मोबाइल लूट ले । हम
सोच ही रहे
थे कि चाय
आ गई । चाय सुरक्षित
थी क्योंकि दन्नू
ने बनाई थी । दन्नू
चाय रखकर चला
गया । हमने चाय का
पहला कश अर्थात पहली
चुस्की ली । अहा ! चाय तो
बंसी की वास्तव
मे अति उत्तम
थी । दन्नू ने जलेबी
और समोसे दो
प्लेटों में रखी
और ले आया
मेज पर ।
हमने जलेबी और
समोसे को देखा
समझ नहीं आ
रहा था कि
खाएँ या नहीं । मस्तिष्क ने कहा कहीं
ऐसा न हो
कि खाएँ और लुढ़क जाएँ
तभी उदर ने
कहा आज तक
मस्तिष्क की मानकर
ही सारे काम
किए हैं क्या ? चुपचाप खाओ और
मुझे संतुष्ट करो । अगर
लूट भी लिया
तो भी इन
पुरानी चीजों से
छुटकारा मिलेगा चुपचाप
उठाओ और खा लो
।
स्पष्ट था कि
हम उदर की ही बात
सुनते । हमने सोचा पहले
चटपटा खाएँ तो
उठाया समोसा और
दाँत गड़ा दिए । पर
आएँ ये कैसा
स्वाद आया मीठा
लगा ये तो । लगता
है हमारी खोपड़ी
इस असहिष्णुता के
चक्कर में सत्यानाश
हो गई है
जो चटपटे को मीठा समझ
रहे हैं । हमने चाय
की तीन चुस्कियों
के साथ समोसा
समाप्त किया ।
बंसी बोला – “ सेठजी , समोसा कैसा लगा ? ”
हम सकुचाकर बोले – “ समोसा , हाँ समोसा , बहुत
बढ़िया । पर ऐसा लगा
जैसे पान की
दुकान पर पिज्जा
खाया हो । ”
बंसी बोला – “ अभी
जलेबी खाएँगे तो
ऐसा लगेगा कि
चाट वाले की
दुकान पर आइसक्रीम
खा रहे हों । ”
हम अपनी बात
कहकर स्वयं ही
उसका अर्थ नहीं
समझ पाए थे । ऊपर
से बंसी ने
एक और पहेली
लाद दी थी । भाड़
में गया पहेली
का अर्थ पहले जलेबी
सपोटें । हमने प्लेट की
सबसे बड़ी जलेबी
उठाई और दाँतों
को समर्पित करी
पर ये क्या ये तो
नमकीन लग रही ।
अब हमसे न
रहा गया , हम
बोले – “ ये क्या है
बंसी ? तुम्हारी दुकान
पर समोसे मीठे
थे और जलेबी
नमकीन ऐसा क्यों ? ”
बंसी ने मारा
गगनभेदी ठहाका और कहा
– “ सेठजी बताएँगे पर
पहले आप ये
बताओ कि आपको
समोसे का मीठापन
और जलेबी का
चटपटापन अच्छा लगा
कि नहीं ? ”
हम बोले – “ चूँकि
पहली बार खाया
इसलिए अटपटा तो
लगा पर फिर
भी अच्छा लगा । इतना
अच्छा जितना कभी
चटपटा समोसा और
मीठी जलेबी भी
नहीं लगी । ”
बंसी बोला – “ सेठजी
यही तो बात
है समोसे से
हमेशा उम्मीद रखी
जाती है कि
वो चटपटा हो
और जलेबी से
ये कि वो
मीठी हो । पर अगर
ये दोनों एक – दूसरे
के स्वाद को
पा लें और
दिखने में वैसे
ही रहें तो
लोगों के मन
को भा जाते
हैं । हमने समोसे में
नमक के बजाय
डाली चीनी और
जलेबी को चाशनी
के बजाय डाला
नमक के पानी
में । अब स्वाद बदला तो बात
आपके दिल में
उतरी न ।
अब देखिए सेठजी अखबार में
कभी – कभी ये खबर
आती है कि
उस मंदिर में
मुस्लिमों ने श्रमदान
किया या उस
मस्जिद के लिए
हिंदुओं ने जगह दी तो बंसी की
दुकान पर दिन
में दसियों ग्राहक
इस खबर को जोर
– जोर से
पढ़कर सुनाते हैं
और सबके मन
को पसंद आती
है ये बात । पर
फिर भी हर
इंसान इसे अपनी
रोजमर्रा की जिंदगी
में शामिल नहीं
कर पाता । पता नहीं
क्यों खूँटे से
सोच को बाँधे
रखता है । पर सेठजी
जिस दिन हिंदू
और मुस्लिम में
पहले जैसी मोहब्बत
ने जोर मारा
न कसम से
सोच के खूँटे
उखाड़कर गले मिलेंगे
दोनों । ”
हम तो जनराय
लेने आए थे
पर बंसी ने
तो अनमोल सबक
दे दिया था
वो भी अद्वितीय
तरीके से । हम बोले – “ वाह
बंसी वाह तुम्हारी
बातों की चाय
सी मिठास और
उनका नुकीलापन बिल्कुल
समोसे के तिकोनों
सा है और
ये जलेबी की
भाँति गोल – गोल करके
एक छोर पर
रुक जाने के
स्टाइल में बात
समझाना हमें तो
बहुत भा गया । ”
हम और भी
कुछ बोलते पर
चाय ने हमारे
उदर में गुड़गुड़
मचा दी थी । ओहो ! पुन: शौचालय जाना
पड़ेगा , हम
बोले – “ बंसी तुमसे बात
करने का और
मन है पर
उदर नहीं । इसलिए शीघ्र
ही अपना बिल
बताओ तो हम
चुकता करके चलें । ”
हमारे उदर पर
हाथ रखकर ये
कहने से बंसी
हमारी उदरोदशा समझ
चुका था , बोला – “ सेठजी , बंसी की दुकान
पर काम जल्दी
और दाम कम
ही रहता है । बस
30 रूपए दे
दीजिए । ”
हमने अपने फटेहाल
हुए पर्स से 10 के करारे 3 नोट निकालकर
बंसी को दिए
और चल दिए ।
हमारे जाते – जाते बंसी
बोला – “ वैसे सेठजी एक
बात कहूँ अगर
चायवाले को उसके
मन की करने
दी जाए न
तो वो सब
ठीक कर सकता
है पर नासमझ
लोग करने नहीं
देते जैसे ये
दन्नू नहीं करने
दे रहा था । ”
बंसी के चेहरे
पर मुस्कान थी । हमने
अपनी द्विचक्रवाहिनी उठाई
और चल दिए
घर की ओर । एक
बात आज सीख
ली थी अगर
कोई मन से
दूसरे को स्वीकार
ले तो जीवन
बहुत ही सरल
हो जाएगा और
असहिष्णुता पाताल के
गर्त में सदैव
के लिए समा
जाएगी ।
है
न...................................
लेखक
प्रांजल सक्सेना
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