एक
मास्टर साहब थे सीधे-सादे,
रहते थे विभाग का बोझ लादे।
सब उनको टेढ़ा सिंह बुलाते थे,
बेचारे विरोध भी न कर पाते थे।
वो सीधापुर गाँव में थे नियुक्त,
जिसमें रहते थे कई अभियुक्त।
सीधापुर में सब के सब थे टेढ़े,
मास्टर जी को कई बार खदेड़े।
बेचारे कैसे भी नौकरी कर रहे थे,
विद्यालय में एकलौते मर रहे थे।
कभी प्रधान कभी अध्यक्ष हड़काते,
कभी-कभी तो बच्चे ही लड़ जाते।
विभागीय योजनाओं का था भार,
फिर भी बच्चों को रहे थे सँवार।
सूचनाएँ बनाने के बाद पढ़ाते थे,
बच्चों का भविष्य सुंदर बनाते थे।
बीएलओ बनने से किस्मत थी फूटी,
छुट्टी बर्बाद करती पोलियो की ड्यूटी।
बेचारे कई रविवार को भी जाया करते,
मास्टर होने की कीमत चुकाया करते।
अबकि देखी जब अवकाश की सूची,
होली अवकाश से आशाएँ हुईं ऊँची।
सोचा चार दिन तक घर पर रह पाएँगे,
पत्नी-बच्चों के साथ समय बिताएँगे।
पर होली वाली सुबह को आया संदेश,
विद्यालय के साथ में सेल्फी करो पेश।
प्रधान, अध्यक्ष, बच्चों के रंग लगाओ,
आख्या को व्हाट्सएप्प पर भिजवाओ।
पत्नी, बच्चों ने मास्टर जी को रोका,
बोले मत जाइए होली का है मौका।
साल में होली आती है एक ही बार,
साथ में रहकर मनाइए न त्योहार।
मास्टर जी बोले जाने का नहीं है मन,
पर न गया तो कट सकता है वेतन।
त्योहार
पर भी जो न रह पाता है घर,
ऐसा व्यक्ति ही तो कहलाता मास्टर।
अवकाश की प्रसन्नता हुई चकनाचूर,
उन्हें रंग लगाने जाना था अति दूर।
तन था हल्का पर मन हो गया भारी,
तुरन्त पकड़ी विद्यालय को सवारी।
बेचारे डग्गामार वाहनों के धक्के खाए,
तब जाकर सीधापुर तक पहुँच पाए।
सबसे पहले गये ग्राम प्रधान के घर,
काँपते हाथों से कुंडी बजायी जमकर।
कुछ देर में प्रधान जी निकलकर आए,
रंगे हुए मास्टर जी को न पहचान पाए।
बोले ऐ! पीले, काले, गुलाबी और लाल,
कौन हो तुम क्यों मचा रहे हो बवाल।
मास्टर जी ने पहले किया अभिवादन,
फिर सेल्फी खिंचवाने का निवेदन।
प्रधान बोले सेल्फी तभी खिंचवाऊँगा,
जब इस योजना में हिस्सा पाऊँगा।
न तुम शौचालय में घपला करवाते हो,
न ही मिड डे मील में कुछ खिलाते हो।
भुगतान किए मैंने पर कुछ न भोगा,
अब सेल्फी में तो कुछ देना ही होगा।
मास्टर जी बोले सुनो तो पूरा किस्सा,
सेल्फी खिंचवाने में माँगो न हिस्सा।
रंग अपने पैसों से खरीदकर हूँ लाया,
फोटो निकलवाने का पैसा न आया।
इसलिए मेरी विनती कीजिए स्वीकार,
आप रंग लगवाने को हो जाइए तैयार।
बुरा मुँह बनाकर प्रधान ने लगवाया रंग,
सेल्फी लेने को करनी पड़ी बहुत जंग।
फिर अध्यक्ष को ढूँढने को गाँव में घूमे,
पता चला अध्यक्ष जी तो नशे में झूमे।
बड़ी मुश्किल से मास्टर जी को पहचाने,
और पहचानते ही लग गए गरियाने।
बोले मास्टर होली में चैन नहीं है तुम्हें,
क्यों नहीं परिवार संग बिता रहे लम्हें।
मास्टर जी बोले अध्यक्ष जी मजबूरी है,
तभी तो त्योहार
पर भी घर से दूरी है।
आपको रंग लगाकर फोटो खिंचवाना है,
फिर आख्या बनाकर अभी पहुँचाना है।
अध्यक्ष बोले रंग लगवाने को दो पैसे,
मैं फ्री में यूँही सेल्फी खिंचवा लूँ कैसे।
यूनिफॉर्म, स्वेटर में तुमने न करी कमाई,
न ही तब कुछ दिया जब हुई थी पुताई।
सेल्फी खिंचवाने को तो करो हिस्सा बाँट,
वर्ना अधिकारियों से लगवा दूँगा डाँट।
मास्टर जी बोले सुनिए प्रिय अध्यक्ष,
तनिक जान लीजिए हमारा भी पक्ष।
प्रत्येक काम का पैसा नहीं आता है,
मास्टर अपनी जेब से ही लगाता है।
सेल्फी खिंचवाने आया नहीं अनुदान,
हमें अपने पास से ही करना भुगतान।
कृपया आप हमसे रंग लगवा लीजिए,
सेल्फी के लिए मुँह को साफ कीजिए।
फिर मास्टर जी ने अध्यक्ष को धुलवाया,
सेल्फी लेने के लिए चेहरे को सुधरवाया।
फूले मुँह से अध्यक्ष ने सेल्फी खिंचवायी,
मास्टर जी ने भागकर जान छुड़वायी।
अब मास्टर जी ने ढूँढी बच्चों की टोली,
जो कीचड़ में उतर खेल रहे थे होली।
विद्यालय जो आते पहनकर कपड़े फटे,
वो यूनिफॉर्म पहनकर कीचड़ में थे डटे।
छुट्टी में मास्टर जी की गाँव में छाया,
ये किसी बच्चे को पसंद नहीं आया।
मास्टर जी को देखकर मुँह को घुमाया,
कुछ ने चेहरे पर और कीचड़ लगाया।
लेकिन मास्टर जी भी थे आखिर मास्टर,
कीचड़ में से भी पकड़ लिया ढूँढकर।
बच्चे
बोले ओ! मास्साब हमें न पकड़ो,
हम प्राइवेट में पढ़ते हैं हमें न जकड़ो।
मास्टर जी बोले मुझसे न बच पाओगे,
चाहें कितना भी रंग, कीचड़ लगाओगे।
दिमाग मेरा अल्ट्रासाउंड, आँखें एक्सरे,
हम बाल मनोविज्ञान की पढ़ाई हैं करे।
बच्चे बोले हमें होली तो मनाने दीजिए,
आप भी अपने बच्चों संग होली कीजिए।
क्यों त्योहार
पर भी आप आ गए गाँव,
आज तो न ही निकालते घर से पाँव।
मास्टर जी बोले हमारी यही कहानी है,
रविवार, जयंती पर भी ड्यूटी बजानी है।
आज तो होली पर भी सेल्फी खिंचानी है,
मास्टर पर चलती सभी की मनमानी है।
मास्टर जी ने बच्चों के मुँह को धुलाया,
फिर सबके थोड़ा-थोड़ा रंग लगवाया।
उसके बाद एक बढ़िया फोटो खिंचवाया,
तब जाकर मास्टर जी को चैन आया।
गाँव में सिग्नल नहीं मिल पा रहे थे,
इसलिए फोटो आगे नहीं जा रहे थे।
सोचा घर पहुँचकर ही भेजूँगा फोटो,
गाँव से निकलते ही पकड़ा ऑटो।
घर पहुँचे तब तक न बचा था हुड़दंग,
सूख चुका था पिचकारी में भरा रंग।
मास्टर जी पर किसी ने न किया गौर,
पानी से नहाने का चलने लगा था दौर।
मास्टर जी ने जेब से निकाला मोबाइल,
तुरन्त भेजी सेल्फी फोटो वाली फ़ाइल।
थोड़ी देर में पलटकर आया एक संदेश,
सेल्फी खिंचवाने का न था कोई आदेश।
किसी ने होली पर किया था उपहास,
अटका दी थी मास्टर जी की श्वांस।
आदेश भेजने वाले ने ठहाका लगाया,
और फिर मास्टर जी को ये समझाया।
इतना गम्भीर होकर न जिया करो,
जीवन में हँसी के कुछ रंग भरो।
नौकरी के अलावा भी है जीवन,
परिवार ही होता है असली धन।
होली है हँसिए और हँसाते रहिए,
फाल्गुन के गीत भी गाते रहिए।
होली है तो जीवन में ठिठोली है,
तभी तो कहते बुरा न मानो होली है,
बुरा न मानो होली है।
रचनाकार
प्रांजल सक्सेना
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शुक्रवार, 2 मार्च 2018
मास्साब की होली
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👍👍🙏🙏 बहुत सुंदर व्यंग।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएंWah kya baat hai! ! ! Realistic and ironic ideas of present condition of teachers. ........
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद। जानकर अच्छा लगा कि बात हृदय तक पहुँची।
हटाएंमज़ेदार बहुत बढ़िया, प्रांजल भाई की एक और ज़बरदस्त रचना।
जवाब देंहटाएं👍👍
आपकी कविता के एक पैरा में कुछ परिवर्तन कर ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा।
किसी बात पर इतना गम्भीर न हो जाया करो,
किसी ज़िद को ऐसे न दिल से लगाया करो,
जो बातें चुभे उन्हें भूल भरो जीवन में हँसी के कुछ रंग।
क्योंकि ज़िद और कड़वी बातों से पहले हैं खुशी के पल * परिवार के संग।
कहते हैं न
बुरा न मानो होली है,
बुरा न मानो होली है।।
बहुत-बहुत धन्यवाद। परिवर्तन सराहनीय है।
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