एक बार एक
जंगल था । उस जंगल में बहेलियों का बड़ा आतंक था । सारे पक्षी बड़े भयभीत रहते थे ।
पर उस जंगल में एक बहुत ही सुंदर आम का वृक्ष था । उस वृक्ष पर बड़े ही मीठे आम हुआ
करते थे । एक बार 5 कौवों का एक झुण्ड उड़ता हुआ उस वृक्ष पर पहुँचा । उन सभी ने
वृक्ष के आमों को चखकर देखा। उन्हें एहसास हुआ कि इससे मीठे आम उन्होंने न खाए
होंगे । कौवों ने निर्णय लिया कि अब इसी पेड़ पर बसेरा बनाएँगे ।
तभी उनमें
से एक कौवा बोला – “ बसेरा तो बना लोगे पर सुना है कि इस जंगल में बहेलिए पक्षियों को चुन-चुनकर
मारते हैं । ”
दूसरे ने
कहा – “ एकता में बड़ी शक्ति होती है । जब भी कोई
बहेलिया आएगा तो हम सब एकत्र होकर उस पर
धावा बोल देंगे । फिर हममें बहेलियों का आतंक नहीं होगा बल्कि बहेलियों में हमारा
आतंक होगा । ”
सब इस बात
से सहमत थे । फिर उन्होंने उस पेड़ पर रहना आरम्भ कर दिया । वे उस पेड़ पर मजे से
रहते , मजे से आम
खाते और बाकि समय आकाश में खूब कुलांचे उड़ते । तभी एक दिन उस जंगल में एक बहेलिया
आया । बड़ी-बड़ी शैतान सी आँखें , हाथों में तीर-कमान लिए दबे पाँव वो पेड़ की और बढ़ने लगा । कौवों ने उसे आते
देख लिया और सतर्क हो गए । बहेलिए ने तीर को कमान पर चढ़ाया ही था कि कौवों ने उस
पर आक्रमण कर दिया । किसी ने उसकी टाँग में काटा तो किसी ने कान काट खाया । एक
कौवे ने तो आँख ही फोड़ दी बहेलिए की । नतीजतन बहेलिया सिर पर पैर रखकर भागा ।
कौवों को ये देख बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने काँव-काँव करके आपस में खूब ख़ुशी
बाँटी । फिर ये सिलसिला चल पड़ा जब भी कोई बहेलिया शिकार को आता पाँचों कौवे मिलकर
उसे भगा देते । सबमें आपस में बड़ा प्रेम था । पर एक कौवा था उनमें जिसके पर थोड़े
भूरे थे । वो अपने को औरों से अधिक सुंदर और बुद्धिमान मानता था । पूरी तरह से
काले न होने का घमण्ड था उसे । हर बार जब भी बहेलिया को सब मिलकर भगाते तो वो सबसे
कहता देखो मैंने कितना अच्छा वार किया न । अपनी ही प्रशंसा वो स्वयं करता था ।
बाकि कौवे सज्जनता में उससे कुछ न कहते थे । एक बार कौवे आम खाकर सो रहे थे । पर
भूरे पर वाले कौवे को नींद न आ रही थी । उसने सोचा क्या करूँ , क्या करूँ ।
फिर अचानक से उस के मन में विचार आया कि क्यों न जंगल की सैर की जाए । सो वो उठा
और चुपके से पेड़ से उड़ गया । उड़ते-उड़ते उसे एक मोटा-तगड़ा सा बाज मिला । बाज को देख
कौवा विपरीत दिशा में उड़कर भागने लगा ।
बाज ने कहा – “ अरे रुको
तो । ”
कौवे ने कहा
– “ नहीं मैं
नहीं रुकूँगा तुम मुझे खा जाओगे । ”
बाज ने कहा – “ नहीं मैं
तुम्हें नहीं खाऊँगा । ”
कौवे ने कहा
– “ नहीं तुम
बहुत बड़े हो मेरा शिकार करके खा जाओगे । ”
बाज ने कहा – “ ऐ सुंदर
कौवे मैं तुम्हें खाना नहीं चाहता । बल्कि तुम्हारा फायदा कराना चाहता हूँ । ”
अब कौवे ने
पर फड़फड़ाना रोक दिया । वह मुड़ा और दूर से ही बाज से बात करने लगा ।
कौवे ने कहा
– “ बाज तुमने
मेरी सुंदरता को समझा इसके लिए धन्यवाद । पर तुम मेरा क्या फायदा कराओगे । ”
अब बाज
कुटिल हँसी हँसा । वह समझ गया कि कौवे पर फेंका गया पाँसा काम कर गया ।
बाज ने कहा – “ मित्र
मैंने सुना है कि तुम पाँच कौवों की टोली है और तुम किसी भी बहेलिए को भगा डालते
हो । ”
कौवे ने कहा
– “ हाँ , हम पाँचों
मिलकर किसी भी बहेलिए पर आक्रमण बोल उसे भगा देते हैं । बाज ने कहा कि हाँ मैं भी
जवानी में बहेलियों को अकेला ही भगा देता था पर अब न तो नाखूनों में वो ताकत रह गई
न ही बदन में वो फुर्ती जिससे कि बहेलियों को मार भगाऊँ । ”
कौवे ने कहा
– “ अकेले तो
ये काम करना बहुत मुश्किल होता होगा । ”
बाज ने कहा – “ अरे कुछ
मुश्किल नहीं होता । पैंतरे होते हैं आक्रमण के । मैं वही तो तुम्हारे फायदे की
बात बता रहा था । तुम पाँचों साथ मिलकर बहेलिए को मारते हो । जबकि ये काम तुम
अकेले ही कर सकते हो । ”
कौवे ने कहा
– “ अकेले कैसे
कर सकता हूँ मैं ? अरे हम
पाँचों का एक दल है , पाँचों
मिलकर काम करते हैं । तभी बहेलिए को भगा पाते हैं न । ”
बाज बोला – “ पर अगर तुम
न हो तो वो चारों बेकार हैं । मैंने देखा है तुम उनसे बहुत तेज हो । अगर तुम न हो
न तो वो चारों मिलकर भी बहेलिए को नहीं
मार सकते । मैंने देखा है तुम्हें बहेलियों को मारते हुए सबसे अधिक मेहनत तुम ही
करते हो । पर वो चारों तुम्हें कोई श्रेय ही नहीं देते । ”
ये सुनकर
कौवे का सीना घमण्ड से फूल गया । उसने कहा – “ हाँ ये तो है मेरा कोई जबाव ही नहीं । पर वो लोग
मेरी उतनी कद्र नहीं करते । ”
बाज बोला – “ कद्र भी
करेंगे और जी हुजूरी भी करेंगे । तुम मुझे अपना गुरु बना लो । मैं तुम्हें बहेलिए
को अकेले ही मारना सिखाऊँगा । ”
कौवे ने कहा
– “ पर तुम
मेरे लिए ऐसा क्यों करोगे ? इसमें
तुम्हारा क्या फायदा । ”
बाज बोला – “ तुमसे मुझे
अपनापन लगता है । तुम्हारे भूरे पंख हैं और मैं पूरा भूरा । भला एक भूरा दूसरे
भूरे को कैसे नुकसान पहुँचा सकता है । अगर तुम फिर भी मेरे लिए कुछ करना ही चाहो
तो मुझे उस पेड़ के आम खाने को दे देना । ”
कौवे ने कहा
– “ ठीक है चलो
मेरे साथ । ”
दोनों उड़कर
पेड़ तक पहुँचे । तब तक बाकी कौवे जाग चुके थे । पाँचवें कौवे के साथ बाज को आता
देख सभी सतर्क हो गए ।
एक कौवे ने
कहा – “ तुम बाज के
साथ क्या कर रहे हो ? ”
भूरे कौवे
ने कहा – “ ये मेरे
गुरु हैं । अब से ये हमारे साथ रहेंगे । ”
चारों कौवों
ने एकजुट होकर कहा – “ बिल्कुल
नहीं ये इस पेड़ पर कतई न रहेगा । ये हमारा है अगर तुम इसे यहाँ पर लाए तो हम मिलकर
इस बाज को मार देंगे । ”
कौवे ने कहा
– “ नहीं मैं
ऐसा नहीं होने दूँगा । मैं.....”
इससे पहले
कौवा कुछ कहता बाज ने कहा – “ रुक जाओ
मेरे लिए अपने साथियों से मत झगड़ो । मैं सामने वाले पेड़ पर रह लूँगा । ”
कौवे ने कहा
– “ पर गुरूजी
। ”
बाज ने कहा – “ गुरु कहा
है तो बात भी मानो । सामने इससे भी बड़ा आम का पेड़ है । मैं उस पर रह लूँगा । बस
गुरुदक्षिणा के बदले तुम कभी-कभी इस पेड़ के मीठे आम खिला दिया करना । ”
कहकर बाज
सामने वाले पेड़ पर रहने लगा । पाँचवा कौवा रहता तो अपने साथियों के साथ वाले पेड़
पर था । पर अक्सर बाज के पेड़ पर जाता था और बाज उसे उल्टे-सीधे दाँव पेंच सिखाकर
उसकी झूठी तारीफ़ कर मीठे आम मंगवाकर खाता । एक दिन अचानक दो बहेलिए जंगल में आए ।
उस समय भूरे पर वाला कौवा बाज के ही पास था । चारों कौवे कुछ डर गए क्योंकि अबकि
बहेलिए दो थे और दो बहेलियों पर आक्रमण करने का कोई अनुभव उनके पास नहीं था ।
सामने से पाँचवें कौवे को आवाज देकर बुला पा पाना सम्भव न था । वर्ना बहेलिए सतर्क
हो जाते । इसलिए उन चारों ने सोचा कि दो-दो कौवे एक-एक बहेलिए पर आक्रमण करेंगे ।
उधर बाज से
भूरे कौवे ने कहा – “ गुरूजी
मुझे जाना होगा । इन बहेलियों को मारने में साथी कौवों की सहायता करनी है । ”
बाज ने कहा – “ रुको
सर्वश्रेष्ठ वीर कौवे । अभी मत जाओ तनिक इन चारों को पता तो चलने दो कि तुम कितने
महत्त्वपूर्ण हो । लड़ने दो इन्हें पहले । ”
कौवे ने कहा
– “ पर अबकि
बार दो बहेलिए हैं । ”
बाज ने कहा – “ वीर कौवे
अकेले ही पर्याप्त होते हैं । दो बहेलियों को मारने के लिए । तुम अकेले ही दोनों
को भगा लोगे पर पहले देख तो लो ये कौवे क्या कर पाते हैं तुम्हारे बिना । ”
कौवा बाज की
बात सुनकर वहीं बैठ गया । उधर दो-दो कौवों ने एक-एक बहेलिए पर हमला बोला । किसी ने
सिर में चोंच मारी तो किसी ने पैर पर । पर वो अपेक्षित आक्रमण नहीं कर पा रहे थे ।
काफी देर तक संघर्ष चलता रहा । अंततः बहेलिए भागने को हुए ।
तभी बाज ने
कहा – “ देखा तुमने
तुम्हारे बिना सब बेकार हैं । जाओ अब जाकर तुम दोनों बहेलियों के कान काट दो । ये
कौवे आँख फोड़ सकते हैं और पैर में चोंच ही
मार सकते हैं । पर तुम जैसे वीर को कान काटने में महारत हासिल है । तुम दोनों के
कान में जोर से काट दो तभी वो भाग जाएँगे । ”
कौवा तेजी
से उड़ता हुआ गया और दोनों बहेलियों के कानों पर आक्रमण कर दिया । पहले से ही
लहूलुहान बहेलिए अब दर्द के मारे और झटपटाने लगे फिर तेजी से भाग गए । ये कहते हुए
कि मीठे आम वाले पेड़ के कौवों का शिकार कोई बहेलिया नहीं कर सकता ।
चारों कौवे
बोले – “ देखा जीत
ही गए । अब कोई बहेलिया इधर का रुख न करेगा । ”
पाँचवा कौवा
बोला – “ हाँ मैंने
आक्रमण ही ऐसे किया कि कोई ठहर ही न पाया । ”
चारों कौवों
ने कहा – “ तुमने क्या
किया आज ? हम लोगों ने ही तात्कालिक रणनीति बनाकर आक्रमण किया
। तुम तो आराम से बाज को आम खिला रहे थे । ”
भूरे कौवे
ने कहा – “ पर तुम लोग
उन्हें भगा कहाँ पाए मेरे आक्रमण के बाद ही वो भागे । चारों कौवे बोले तुम्हारे
आक्रमण से कुछ न हुआ । हम ही लोगों ने उसे इतना थका दिया था कि वो सिर पर पैर रखकर
भागे तुम तो अंत में आए । न भी आते तो भी थोड़ी देर में वो भाग ही जाते । ”
इतने में
बाज वहाँ आया और उसने कहा – “ देखा वीर
कौवे मैंने कहा था न कि ये लोग तुम्हारी योग्यता कभी न समझेंगे । मैं ही तुम्हारा
सच्चा हितैषी हूँ । ”
चारों कौवे
बोले – “ ऐ बाज
तुमसे अधिक बरगलाने वाला कोई नहीं हो सकता । तुम हमारे मित्र को कहीं का न छोड़ोगे
। ”
बाज के कुछ
कहने से पहले ही भूरे कौवे ने कहा – “ काले कौवों खबरदार जो मेरे गुरु को कुछ कहा तो ।
वर्ना तुम्हारे भी कान काट दूँगा । ”
चारों कौवे
बोले – “ तुम कान
काट सकते हो तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं । पर तुम कभी हमारे साथी थे , ये सोचकर
तुम्हें छोड़ रहे हैं । ”
फिर भूरा
कौवा , बाज के साथ
दूसरे पेड़ पर चला गया और बाकि कौवे अपने पेड़ पर । बाज द्वारा भूरे कौवे को
दिग्भ्रमित करके मित्र कौवों से अलग रखने का काम जारी था ।
एक दिन बाज
ने कहा – “ बहुत दिन
हो गए मीठे आम खाते काश माँस खाने को मिले अब । ”
भूरे कौवे
ने कहा – “ गुरूजी आप
चिंता मत करो अब कोई बहेलिया आया तो मैं उसको खूब जोर से काटूंगा और माँस नोंचकर
आपको खिलाऊँगा । ”
बाज ने कहा – “ मुझे तुम
जैसे वीर से यही आशा थी । ”
फिर दोनों
बहेलिए की प्रतीक्षा करने लगे ।
एक दिन एक
बहेलिया आया चारों कौवे वाले पेड़ के पास पहुँचकर बोला – “ इस पेड़ के
कौवों का तो शिकार नहीं । ये बहुत ही खतरनाक हैं । कहीं और देखता हूँ । ”
तभी वो
बहेलिया मुड़ा । चारों कौवे आपस में ख़ुशी मनाने लगे कि चलो अब हमसे कोई टकराने की
सोचता भी न । उन्हें ख़ुशी मनाते देख बाज ने कहा – “ देखो चारों कौवे कितने खुश हैं । उन्होंने
अवश्य ही उस बहेलिए को इस पेड़ पर बैठे मुझे और तुम्हें मारने को कहा होगा । ”
भूरे कौवे
ने कहा – “ ऐसा कहा
होगा ? कितने बुरे निकले मेरे पुराने साथी । पर आज इन्हें
पता चलेगा कि मैं चीज क्या हूँ । आज मैं अकेला ही इस बहेलिए को भगा दूँगा साथ ही
आपके लिए ताजा माँस भी लाऊँगा । ”
बाज ने कहा – “ विजय भवः ।
”
बहेलिया बाज
वाले पेड़ के निकट जाने लगा तभी कौवा उड़ते हुए गया और जाकर बहेलिए के कान पर हमला
कर दिया । बहेलिए ने भी तीर-कमान जमीन पर फेंककर तुरन्त कौवे को पकड़ लिया ।
फिर बहेलिया
बोला – “ आज पकड़ ही
लिया । तू ही होगा वो कौवा जिसने पहले भी मेरे कान पर हमला बोला होगा । पर आज मैं
तुझसे बदला लेकर रहूँगा । तेरी गर्दन मेरे हाथों में है आज तो तुझे मसलकर ही
रहूँगा । ”
भूरे कौवे
को मुसीबत में देखकर चारों कौवे उड़ते हुए आक्रमण करने आए । उन्होंने मिलकर बहेलिए
पर आक्रमण कर दिया । परिणामस्वरूप बहेलिया भूरे कौवे को वहीं छोड़कर भाग गया । पर
भूरा कौवा बहुत अधिक घायल हो चुका था । मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया था ।
चारों कौवे
बोले –“देखा हमसे
दूर होने का परिणाम । इस बाज ने तुम्हें मरवा ही दिया न । हमने तुम्हें कितना
समझाया था कि एक ही तरह से मत लड़ा करो । नए पैंतरे आजमाओ पर तुम न माने और बहेलिया
तुम्हारे पैंतरों का आदि हो गया तो उसने तुम्हें आराम से दबोचकर मार दिया । ”
बाज बोला – “ देखा
तुम्हारे पुराने मित्र कैसे हैं । अब जब तुम आधे मर ही गए थे तो तुम्हें पूरा ही
मर जाने देते । ताकि तुम्हें ज्यादा तकलीफ तो न होती पर उस बहेलिए को इन्होंने
इसलिए भगाया ताकि तुम तड़पकर मरो । ”
भूरा कौवा
बोला – “ आप सही कह
रहे हैं गुरुजी । मुझे असहनीय पीड़ा हो रही है । ये मेरे मित्र नहीं शत्रु हैं । ”
अंत समय में
भी बाज की चाटुकारिता करते देखकर चारों कौवे निराश होकर वापिस चले गए ।
बाज ने कहा – “ आज तुम्हें
इस बात की भी पीड़ा हो रही होगी कि तुम मेरे लिए माँस का इंतजाम नहीं कर पाए । ”
भूरे कौवे
ने कहा – “ हाँ
गुरुदेव आपकी इच्छा पूरी न कर पाने का बड़ा दुःख है मुझे । ”
बाज ने कहा – “ पर मैंने
तुम्हारी दोनों पीड़ा हर लेता हूँ । तुम्हें मारकर खा जाता हूँ । इससे एक ओर
तुम्हें इस असहनीय शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी दूसरे मुझे माँस मिल जाएगा तो
तुम्हारी मानसिक पीड़ा भी समाप्त होगी । ”
भूरे कौवे
ने कहा – “ अवश्य
गुरुदेव आपसे महान कोई नहीं । शीघ्र ही मेरी पीड़ा हरिए । ”
बाज ने एक
झपट्टा मारा और कौवे की गर्दन अलग करके उसे खा गया । बाद में ऊपर की ओर देखकर बाज
बोला – “ हे ऊपरवाले
बस एक कृपा करना । ये कौवा था तो स्वादिष्ट । बस इसे खाया है तो इसके जैसी
अंधस्वामीभक्ति मेरे अंदर न समा जाए । ”
बाज ने मीठे
आम वाले पेड़ के ऊपर से उड़ान भरी और कहता हुआ निकल गया – “ वैसे तुम
चारों में से एक की पूँछ औरों से सुंदर है
। ”
चारों कौवे
ने एक दूसरे को विस्मय से देखा फिर बोले जिन्दा रहना है तो आईने से बचना होगा ।
लेखक
प्रांजल सक्सेना
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