धरती माँ की गोद में , बेफ्रिक सो जाया करते हैं ,
नीले आसमान को , अपनी छत बताया करते हैं ।
पेट की आग को , आँसुओं से बुझाया करते हैं ,
फ़टे कपड़ों को लपेट , इज्जत बचाया करते हैं ।
एक रूपए के बदले , लाखों दुआएँ दिया करते हैं ,
इन दिलवालों को लोग , गरीब कहा करते हैं ।
एक ही रोटी को बाँटकर , गुजर किया करते हैं ,
फुटपाथ पर रहने वाले , रिश्ते निभाया करते हैं ।
हम तेज हवा में भी , घर में दुबक जाया करते हैं ,
वो तूफानी बारिश में भी , जमकर नहाया करते हैं ।
क्षुद्र दुःख का कारण भी हम , भगवान को बताया करते हैं ,
वो अपार दुःख में भी , भगवान के नाम से कमाया करते हैं ।
कटोरे में सिक्के की खनक से , हँस जाया करते हैं ,
मिलेगा भरपेट खाना , ये सपने सजाया करते हैं ।
दौलत नहीं है फिर भी , लुट जाया करते हैं ,
कीमती जान पर कुछ , गाडी रौंदाया करते हैं।
रचनाकार
प्रांजल सक्सेना
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एक रूपए के बदले , लाखों दुआएँ दिया करते हैं ,
इन दिलवालों को लोग , गरीब कहा करते हैं ।
एक ही रोटी को बाँटकर , गुजर किया करते हैं ,
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हम तेज हवा में भी , घर में दुबक जाया करते हैं ,
वो तूफानी बारिश में भी , जमकर नहाया करते हैं ।
क्षुद्र दुःख का कारण भी हम , भगवान को बताया करते हैं ,
वो अपार दुःख में भी , भगवान के नाम से कमाया करते हैं ।
कटोरे में सिक्के की खनक से , हँस जाया करते हैं ,
मिलेगा भरपेट खाना , ये सपने सजाया करते हैं ।
दौलत नहीं है फिर भी , लुट जाया करते हैं ,
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