27 जुलाई 2015
जन्नत में बेसब्री
से प्रतीक्षा हो
रही थी एक
फरिश्ते की । चारों ओर
उत्सव का सा
महौल था । सभी तैयारियों
में लगे हुए थे
। दो फरिश्ते आपस
में बातें करने
लगे ।
पहला फरिश्ता – “ क्या बात है
, आज इतनी
चहल – पहल क्यों ? जन्नत के शांत
माहौल में इतना
कोलाहल पहली बार
देख रहा हूँ । ”
दूसरा फरिश्ता – “ अरे !
कोलाहल नहीं ये
तो तैयारियाँ हैं
जो किसी उत्सव
से पहले होती
हैं । अब वैसे तो
जन्नत में कोई
गम है ही
नहीं , चारों ओर
खुशियाँ ही खुशियाँ
हैं । पर आज तो
खुशियों का चरम है
, धरती से
एक नया फरिश्ता
जो आ रहा है
। ”
पहला फरिश्ता – “ यहाँ तो
जो भी आता
है वो खुदा
का बंदा ही
होता है । पर आज
ऐसा कौन खास
आ रहा है ? ”
दूसरे फरिश्ते ने कहा
– “ ठीक से तो मुझे
भी न पता ।
बस इतना पता है कि कोई
हिंदुस्तान से आ रहा है और उसे हिंदुस्तान का सबसे
बड़ा ईनाम भी
मिला है - भारत
रत्न । ”
पहला फरिश्ता बोला – “ ओह ! तब तो पक्का
कोई
खुदा का बन्दा ही
होगा । अब तो मुझे भी मुलाकात
की बेसब्री हो रही है । ”
दूसरा फरिश्ता बोला – “ हाँ
भाई ! सुना है कि इस बन्दे के
सद्कर्मों से जन्नत
आने की जो
सीढ़ी बन रही थी वो
आज जन्नत से
भी ऊपर हुई
जा रही थी । तभी
इन्हें फरिश्ता भेजकर
बुला लिया गया । लो
आ गए महानुभाव । ”
तीसरे फरिश्ते के साथ
झक सफेद रंग के कपड़ों में एक फ़रिश्ते जैसी आत्मा
प्रवेश करती है ।
पहला फरिश्ता बोला – “ आइए जनाब
, आप ही
का इन्तजार हो
रहा था । ”
नई आत्मा – “ ये कौन – सी जगह है
? मैं तो
आईआईएम में स्टूडेंट्स
से अनुभव साझा
कर रहा था । ”
पहला फरिश्ता – “ अरे ! जनाब ये
तो वो जगह
है जिसके लोग
सपने देखा करते
हैं पर कई
बार इसे पाने
के लिए कुछ
करते नहीं । एक आप
थे जिन्होंने कभी
इसे पाने का
सपना का नहीं
देखा पर काम
ऐसे किए कि
सीधा यहीं आए । ये
वो जगह है
जहाँ आपको कोई
पापी नहीं मिलेगा
बल्कि आपके ही
जैसे खुदा के
बंदे मिलेंगे । ये जन्नत
है जनाब जन्नत । ”
नई आत्मा – “ ओह ! यानि मैं
मर गया । मेरा आखिरी
वक्तव्य अधूरा रह गया
। स्टूडेंट्स को बुरा
लगा होगा । ”
दूसरा फरिश्ता – “ अरे !
छोड़िए जनाब । अब वो
सब तो छूट
ही गया , यहाँ आपको
बस आराम से
रहना है । आपने जीवन
में बहुत सारे
वक्तव्य दिए हैं । अब
कभी न कभी
तो स्टूडेंट्स से
दूर होना ही था
। 80 से
ऊपर जिए आप , इतना
काम करते रहने
से भी क्या ? अब जन्नत के
मजे लीजिए । ”
नई आत्मा – “ काश आप
थोड़ी देर और
लगाते तो वो
वक्तव्य पूरा हो
पाता । एक आखिरी बार
स्टूडेंट्स के साथ
अनुभव साझा कर
लेता , कितनी उम्मीदों
से आते हैं
स्टूडेंट्स । बेचारे उस हॉल से क्या
लेकर जा पाए
होंगे ? एक मृत्यु
का गम , जबकि उन्हें
वहाँ से ले
जाने थे कुछ
ऐसे पल जो
जीवन भर उनके
काम आए । ”
तीसरा फरिश्ता बोला – “ मुआफ
कीजिएगा जनाब । अब जो
समय मुझे दिया
गया था आपको
यहाँ लाने का
उसी समय ले आया
। खैर उस
बात को छोड़िए
और जन्नत के
मजे लीजिए । ”
नई आत्मा – “ ठीक है
आप बताइए ये
जन्नत कैसी जगह
होती है ? यहाँ मेरी
क्या भूमिका रहेगी ? मैं आपके लिए
क्या कर सकता
हूँ ? ”
पहला फरिश्ता बोला – “ अरे ! बस , बस जनाब , अब क्या
मरने के बाद
भी कुछ न
कुछ करते ही
रहेंगे । अजी ! जन्नत कुछ करने
के लिए थोड़े
ही बनी है । ये
तो बनी है
जमीन पर करे
गए कर्मों के
सुख भोगने को । यहाँ
तो आराम से
रहिए , जब जो
मर्जी आए खाइए , पीजिए । यहाँ कोई परहेज
नहीं करता क्योंकि
यहाँ कोई कभी
बीमार ही नहीं
होता । ”
नई आत्मा – “ मुआफ करें , मुझे लजीज व्यंजन
का कोई शौक
नहीं है । क्योंकि जिव्हा
पर नियंत्रण न
होने से स्टडी
में रूकावट आती है
। तो लजीज व्यंजनों
के अतिरिक्त क्या
है करने को
जन्नत में ? ”
नई आत्मा के
इस अप्रत्याशित जबाव
के बाद फरिश्ते
एक – दूसरे का
मुँह देखने लगे । दूसरे
फरिश्ते ने कहा – “ इसके
अलावा तो 72
हूरें भी हैं , जो आपका मन
बहलाएँगीं । ”
नई आत्मा ने
ठहाका मारा और कहा
– “ हूरें और
वो भी 72......क्या
करूँगा मैं उनका ? जब मुझे निकाह
के लिए लड़की
देखने जाना था
तब मैं काम
में ऐसा उलझा
हुआ था कि
जाना ही भूल
गया । फिर कभी मन
किया नहीं निकाह
करने का । पूरी जिंदगी
देशसेवा में ही
गुजार दी । मुझे 1
भी हूर में
रूचि नहीं है , आप 72 हूरों
को किसी शौकीन
के लिए रखिए । मुझे
तो ये बताइए
कि मैं यहाँ
लोगों की क्या
सेवा कर सकता
हूँ ? ”
फरिश्ते अपना सिर
खुजाने लगे । जहाँ लोग
72 हूरों के
नाम से ही
लार टपकाने लगते
थे , वहाँ ये
नई आत्मा हूरों
को ऐसे ठुकरा
रही थी मानो
हूरें नफरत का
सबब हों । ऊपर से
जन्नत में भी
कर्मयोगी स्वभाव को
अपनाए हुए अपने
लिए काम ढूँढ
रही थी ।
पहला फरिश्ता बोला – “ काम ?............काम
क्या होगा यहाँ जनाब
? यहाँ समस्याएँ
तो हैं ही
नहीं । कुछ भी चाहिए
हो तो बस दिल में
ख्वाहिश लाइए और
चीज सामने आ जाती है । ये
जगह खुदा के
बंदों से गुलजार
है । इसलिए यहाँ मिसाइल
भी नहीं बनाना
है आपको । हाँ एक
काम आप कर
सकते हैं आप
धरती पर तो
फरिश्ते जैसे थे ही , यहाँ भी
फरिश्ते बन जाइए
या फिर नए
फरिश्तों के उस्ताद
बनकर उन्हें तालीम
दीजिए । आप तो वैसे
भी शागिर्दों को
बहुत पसंद करते
हैं । ”
नई आत्मा – “ हाँ स्टूडेंट्स
मुझे बहुत पसंद
हैं । पर मुझे नहीं
लगता कि मैं
कोई फरिश्ता हूँ । मैंने
तो बस वही
किया जो कि
मुझे एक इंसान
के तौर पर
करना चाहिए था और रही
बात फरिश्तों को
शागिर्द बनाने की
तो वो काम मेरे बस
का नहीं । फरिश्ते तो बस खुदा के ही
शागिर्द बने अच्छे
लगते हैं । ”
दूसरा फरिश्ता बोला – “ आपकी
इसी सोच की
वजह से ही
तो आप जन्नत
के असली हकदार
हुए । अब आप ही
बताइए कि आप
क्या करना चाहेंगे ? ”
नई आत्मा ने कहा
– “ अब तक
आपसे जो सुना
है उसके अनुसार
जन्नत मुझे अपने
रहने लायक जगह
नहीं लगती । आप यदि
मेरे लिए कुछ
करना ही चाहें
तो मुझे वापिस
धरती पर फिर से भेज
दीजिए एक नए
जन्म के साथ । ”
पहला फरिश्ता – “ धरती पर
दुबारा ?
पहली बार
किसी को देख
रहा हूँ जो
कि जन्नत मिलने
के बाद भी
वापिस धरती पर
जाना चाहता है । ठीक
है जनाब जैसा
आप चाहें , आप अभी
आराम से जन्नत
के मजे लीजिए
फिर जब जी भर जाए
तो हमें बता
दीजिएगा । हम आपको एक
बढ़िया सी जगह
जन्म दिला देंगे । ”
नई आत्मा हँसते
हुए – “ चारों और
सुख का घेरा और कर्म
से परे जन्नत
के बारे में
सुनकर ही मन भर गया
है मेरा । हो सके
तो आप अभी
मुझे धरती पर भेज दीजिए । ”
पहला फरिश्ता – “ ठीक है जनाब जैसा
आप चाहें । हम आपको
जन्म-मरण के लेखाकार
के पास ले
चलते हैं । वो आपको
कहीं न कहीं
एडजस्ट कर देगा । ”
थोड़ी देर बाद
लेखाकार कार्यालय में
फरिश्ता – “ लेखाकार जी , मिलिए जन्नत
को ठुकराने वाले
से । जनाब वापिस धरती
पर जाना चाहते
हैं , देखो है
कोई माँ जिसको
किसी खुदा के
बंदे को जन्म
देना हो । वहीं भेज
दो जनाब को । ”
लेखाकार – “ हैं ? एक
घण्टा भी न
रुके जनाब जन्नत
में ? वापिस धरती
पर जाना चाहते । ”
फरिश्ता – “ रुके ? अरे
! जनाब तो जन्नत
के दरवाजे से
ही लौट आए , अंदर भी न गए ।
अरे ! भाई सारी दुनिया
इन्हें कर्मयोगी इसीलिए
तो कहती है । अब
देखिए कोई जगह
इनके लिए । ”
लेखाकार ने अपने
बही खाते को
खंगाला फिर बोला – “ हाँ
करीब 100 जन्म
होने हैं इस
महीने जो खुदा
के बंदे बनकर
धरती को रोशन
करेंगे । तो जनाब आप
किस मुल्क में
पैदा होना चाहेंगे ? ”
नई आत्मा – “ बिना किसी
शक के हिंदुस्तान
में । ”
फरिश्ता – “ हिंदुस्तान में ?.....फिर से ? अरे ! बहुत सारे मुल्क
हैं जनाब फिर हिंदुस्तान ही
क्यों ? बोर नहीं
हो जाएँगे क्या ? ”
नई आत्मा हँसते
हुए – “ क्या मुझे
इसी याद्दाश्त के साथ धरती
पर भेजेंगे ? अरे ! मुझे इन
पुनर्जन्म की यादों
के चक्कर में
मत फँसाइएगा । अगर मेरी
सारी याद्दाश्त ही
मिट जाएगी तो फिर कहाँ
याद रहेगा कि
पिछले जन्म मे
किस मुल्क में
पैदा हुआ था । मुल्क
तो बहुत हैं
लेखाकार जी पर
भारत जैसा कोई
नहीं जो सच्चे
मुसलमानों को दिल
खोलकर अपनाता है । अगर
किसी और मुल्क
में जन्म ले
भी लिया न
तो शायद जिंदगी भर
यही सोचता रहूँगा
कि काश हिंदुस्तान
जैसे महान देश
में जन्म लेता । इसीलिए
हिंदुस्तान में ही
जन्म दीजिएगा । ”
लेखाकार – “ वास्तव में धरती
को आप जैसे
खुदा के बंदे
ही गुलजार रखते
हैं । ठीक है हम
आपको हिद्नुस्तान में
ही भेजते हैं । पर
पिछली बार आप एक मछुआरे
के घर में
जन्मे थे । अबकि बार
तो आपको किसी
अमीर खानदान में
पैदा करते हैं । ”
नई आत्मा – “ प्लीज , ऐसा मत
कीजिएगा । आप मुझे किसी
गरीब के घर
ही पैदा कीजिएगा । मैं
मछुआरे के घर
में पैदा होकर
राष्ट्रपति बना था
फिर कुछ ऐसा
ही करना चाहता
हूँ । मैं अपनी शख्सियत
बनाने के लिए
अधिकतम काम खुद
ही करना चाहता
हूँ । ”
लेखाकार – “ खड़े होकर , सौ बार
सलाम है आपको
जनाब । आप जैसा कहेंगे
वैसा ही होगा । ”
नई आत्मा – “ प्लीज बैठ
जाइए । आप युगों से
धरती पर लोगों
को भेजने का
काम कर रहे
हैं , उनकी जिंदगी – मौत का हिसाब – किताब रखते हैं । आपका
पद बहुत बड़ा है
। आप मुझ
जैसी अदनी सी
आत्मा के सामने
मत खड़े होइए । ”
लेखाकार बैठकर – “ आपसे सीखने
को बहुत कुछ है जनाब
। ये जन्नत की बदकिस्मती ही
कही जाएगी कि
आप उसे छोड़कर
धरती की किस्मत
बनाने जा रहे । खैर
अब आपको ज्यादा
कष्ट नहीं दूँगा । आपको
आपकी मनचाही जगह
भेज रहा हूँ । ”
कहकर लेखाकार ने
अपने बही – खातों में
कुछ हिसाब लगाया
और फिर बोला – “ हाँ
ये सही रहेगा । जनाब
आप इस पते
पर निकल जाइए । आप
जैसी जगह चाहते
थे बिल्कुल वैसी
ही है । ”
नई आत्मा – “ शुक्रिया जनाब , अब चला वतन
का सिपाही बनने । ”
कहकर वो आत्मा
एक प्रकाश पुंज में
बदल गई और
निकल गई फिर
एक नए सफर को
। जन्नत में फरिश्ते
ने कहा – “ पहली बार
देखा किसी को
जन्नत ठुकराते हुए । इन
जैसा कोई बरसों
में ही पैदा
होता है । पर जनाब
ये थे कौन ? नाम तो बताओ । ”
लेखाकार ने कहा – “ ये थे भारत के
पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 अब्दुल
कलाम । एक सच्चा मुसलमान
जिसको सभी हिंदुओं
ने चाहा । अरे ! पूरा हिंदुस्तान
रोया है इस
बन्दे के लिए । धरती
पर कयामत रुकी
हुई है तो
ऐसे ही खुदा
के बन्दों से । ”
फ़रिश्ता – “ ओह ! तो ये कलाम
साहब थे । बड़ा नेकदिल
इंसान था । ”
लेखाकार बोला – “ खुदा कुछ
ही को नवाजता
है ऐसी शख्सियत
से । वैसे सच कहूँ
तो मैं तो
इन्हें चालाक ही
कहूँगा क्योंकि इन्होंने
जन्नत के बजाय
हिंदुस्तान को चुना
जो अपने में
सैकड़ों जन्नतों के बराबर है
और ये उसे
जाकर और निखारेंगे । ”
फरिश्ते के चेहरे
पर सहमति भरी
एक मुस्कान थी ।
डिस्क्लेमर – उपरोक्त लेख पूर्णतया
काल्पनिक है और
केवल कलाम साहब
को लेखक द्वारा
श्रद्धांजलि के तौर
पर लिया गया है
। लेख का
उद्देश्य किसी भी
धर्म या व्यक्ति
की भावनाएँ आहत
करना कतई नहीं
है ।
लेखक
प्रांजल सक्सेना
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