कैसी विपदा आई रे भैय्या ,
नाव डुबो रहा मेरा खैवइय्या ।
उसने पास बुलाकर किया दुलार ,
मैंने उसे समझा अपना तारणहार ।
पर दरअसल उसने मुझे बहलाया ,
मुझे भँवर में उसने धकियाया ।
काश मुझे वो तैरना सिखलाता ,
जीतने के सारे पैंतरे बतलाता ।
पर उसने गलत रस्ता दिखलाया ,
सुंदर भ्रम के लोलीपॉप से रिझाया ।
तुझे न माफ़ करेगी मेरी आत्मा ,
अत्यंत निकट है तेरा खात्मा ।
बड़े झूठे निकले तेरे वादे ,
हम ही न समझे तेरे इरादे ।
तुझे सर्वस्व मानकर तेरे पीछे चला ,
और तूने चुपके से मुझे ही छला ।
तुझको देवता मानकर की इबादत ,
तूने धोखे की लिख दी इबारत ।
झूठ बोला , सब्जबाग दिखाए तूने ,
ख़ुशी में छाती के इंच हुए थे दूने ।
कैसे जिएँगे अब , कैसे पड़ेगी पूर ,
हृदय टूटा , स्वप्न हुए चकनाचूर ।
पर हम न टूटेंगे , न ही हारेंगे ,
तुमने बिगाड़ा है , हम सुधारेंगे ।
न अश्रु बहाएँगे , न लड़खड़ाएँगे ,
पुनः उठेंगे और डट जाएँगे ।
हमें अपना मार्ग स्वयं ही बनाना है ,
उठो साथियों अभी बहुत दूर जाना है।
उसने पास बुलाकर किया दुलार ,
मैंने उसे समझा अपना तारणहार ।
पर दरअसल उसने मुझे बहलाया ,
मुझे भँवर में उसने धकियाया ।
काश मुझे वो तैरना सिखलाता ,
जीतने के सारे पैंतरे बतलाता ।
पर उसने गलत रस्ता दिखलाया ,
सुंदर भ्रम के लोलीपॉप से रिझाया ।
तुझे न माफ़ करेगी मेरी आत्मा ,
अत्यंत निकट है तेरा खात्मा ।
बड़े झूठे निकले तेरे वादे ,
हम ही न समझे तेरे इरादे ।
तुझे सर्वस्व मानकर तेरे पीछे चला ,
और तूने चुपके से मुझे ही छला ।
तुझको देवता मानकर की इबादत ,
तूने धोखे की लिख दी इबारत ।
झूठ बोला , सब्जबाग दिखाए तूने ,
ख़ुशी में छाती के इंच हुए थे दूने ।
कैसे जिएँगे अब , कैसे पड़ेगी पूर ,
हृदय टूटा , स्वप्न हुए चकनाचूर ।
पर हम न टूटेंगे , न ही हारेंगे ,
तुमने बिगाड़ा है , हम सुधारेंगे ।
न अश्रु बहाएँगे , न लड़खड़ाएँगे ,
पुनः उठेंगे और डट जाएँगे ।
हमें अपना मार्ग स्वयं ही बनाना है ,
उठो साथियों अभी बहुत दूर जाना है।
रचनाकार
प्रांजल सक्सेना
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