घमंडी धनवान
उवाच
ऐ ! सूरज
थोड़ी सी रिश्वत ले ,
अपनी ये तपिश कम कर ले ।
अपनी ये तपिश कम कर ले ।
तेरा ताप तो
बढ़ा ही जा रहा ,
धरती पर इंसान जला जा रहा ।
धरती पर इंसान जला जा रहा ।
एसी , कूलर और ठण्डा पानी ,
इतनी गर्मी में सब हुए बेमानी ।
इतनी गर्मी में सब हुए बेमानी ।
तू हमें
इतना क्यों सता रहा ,
क्या कुछ माल-पानी चाह रहा ।
क्या कुछ माल-पानी चाह रहा ।
अरे ! हम
बहुत बड़े अमीर हैं ,
कईयों के खरीदे जमीर हैं ।
कईयों के खरीदे जमीर हैं ।
हमारा समय
खराब न कराओ ,
जल्दी से अपनी कीमत बताओ ।
जल्दी से अपनी कीमत बताओ ।
हम देंगे
पैसा आप ऐश कीजिए ,
ब्रांडेड खाइए और मॉल में घूमिए ।
ब्रांडेड खाइए और मॉल में घूमिए ।
चाहें तो
प्लेन का टिकट लीजिए ,
पर तपिश की मात्रा कम कीजिए ।
पर तपिश की मात्रा कम कीजिए ।
ऐ ! चाँद थोड़ी
सी रिश्वत ले ,
अपनी शीतलता दुगुनी कर ले ।
अपनी शीतलता दुगुनी कर ले ।
हमने सूरज
को भी समझाया था ,
पर उसने ऑफर ठुकराया था ।
पर उसने ऑफर ठुकराया था ।
सूरज तो
बेरहम हुआ जा रहा ,
तेरा ही सहारा नजर आ रहा ।
तेरा ही सहारा नजर आ रहा ।
तुझे दे
सकते हैं रुतबा आलीशान ,
बस हमारी बात को ले तू मान ।
बस हमारी बात को ले तू मान ।
अपनी शीतलता
को दुगुना करना ,
छः महीने बिल्कुल भी न घटना ।
छः महीने बिल्कुल भी न घटना ।
रात में
बिल्कुल भी न पड़ना मन्द ,
छः माह को अमावस करना बन्द ।
छः माह को अमावस करना बन्द ।
हो सके तो
दिन में भी निकलना ,
दोपहरी की गर्मी को कम करना ।
दोपहरी की गर्मी को कम करना ।
बदले में
देंगे पैेकेज शानदार ,
बंगला , केबिन और मोटर कार ।
बंगला , केबिन और मोटर कार ।
ऐ ! मेघ
थोड़ी सी रिश्वत ले ,
मेरे अनुसार तू वृष्टि कर ले ।
मेरे अनुसार तू वृष्टि कर ले ।
आजकल तो
मनमौजी हुआ जा रहा ,
जब भी चाहता तब बरसा जा रहा ।
जब भी चाहता तब बरसा जा रहा ।
तू जब मन
चाहता हमें भिगोता है ,
क्या तेरा कोई नियम नहीं होता है ।
क्या तेरा कोई नियम नहीं होता है ।
तू अपनी
पॉलिसी कुछ चेंज कर ,
मेरे अनुसार बारिश अरेंज कर ।
मेरे अनुसार बारिश अरेंज कर ।
एक तो ऑफिस
आते - जाते न बरसना ,
मेरे सोते समय बिल्कुल भी न गरजना ।
मेरे सोते समय बिल्कुल भी न गरजना ।
बरसने का
टाइम कर ले सेट ,
बदले में दूँगा तेरे मनचाहे रेट ।
बदले में दूँगा तेरे मनचाहे रेट ।
मेरे बात
मान ले बिना कोई पेंच ,
एक बार तो अपना ईमान ले बेच ।
एक बार तो अपना ईमान ले बेच ।
ईमान बेचने
में तेरा ही फायदा है ,
अरे 21वीं सदी का यही कायदा है ।
अरे 21वीं सदी का यही कायदा है ।
ऐ ! प्रकृति
थोड़ी सी रिश्वत ले ,
अपना ये प्रकोप कम कर ले ।
अपना ये प्रकोप कम कर ले ।
मेघ , चन्द्रमा और सूरज ,
न सुनी इन्होंने मेरी अरज ।
तेरे बच्चों
में अपार घमण्ड ,
क्यों हैं तेरे बालक उद्दण्ड ।
क्यों हैं तेरे बालक उद्दण्ड ।
मैंने इतने
अच्छे ऑफर दिए ,
पर तेरे बच्चे ध्यान न दिए ।
पर तेरे बच्चे ध्यान न दिए ।
अब तुझे भी
दे रहा हूँ चेतावनी ,
कहो इनसे मेरी बात है माननी ।
कहो इनसे मेरी बात है माननी ।
वर्ना तेरे
सारे घोटाले खुलवाऊँगा ,
तेरे कृत्यों पर तुझे जेल करवाऊँगा ।
तेरे कृत्यों पर तुझे जेल करवाऊँगा ।
कभी लाती
बाढ़ तो कभी भूस्खलन ,
कभी लाकर भूकम्प लाखों का दमन ।
कभी लाकर भूकम्प लाखों का दमन ।
जो तूने
मेरा ऑफर न किया स्वीकार ,
भगवान के आगे पेश करूँगा ये भ्रष्टाचार ।
भगवान के आगे पेश करूँगा ये भ्रष्टाचार ।
प्रकृति
उवाच
ऐ ! मानव
थोड़ी सी शर्म कर ले ,
अपनी ये सोच परिवर्तित कर ले ।
अपनी ये सोच परिवर्तित कर ले ।
तुझे है बस
धन का सम्मोहन ,
तूने किया मेरा अंधाधुंध दोहन ।
तूने किया मेरा अंधाधुंध दोहन ।
पर धन से हर
वस्तु नहीं खरीदी जाती ,
प्रकृति को लगी चोट यूँ ही न भर पाती ।
प्रकृति को लगी चोट यूँ ही न भर पाती ।
बनाई ऊँची
इमारत खोदी गहरी खदान ,
मेरे कण - कण बेचकर बन बैठा तू महान ।
मेरे कण - कण बेचकर बन बैठा तू महान ।
मेरी कीमत
तूने लगाई है तो तू ही चुकाएगा ,
लिया है मुझसे लाभ तो हानि कौन उठाएगा ।
लिया है मुझसे लाभ तो हानि कौन उठाएगा ।
मेरे सूर्य , चन्द्रमा , मेघ व्यवहार में न रूखे हैं ,
न बेईमान हैं न तेरी तरह पैसे के वो भूखे हैं ।
न बेईमान हैं न तेरी तरह पैसे के वो भूखे हैं ।
हम आदिकाल
से अब तक बिल्कुल वैसे हैं ,
हाँ पहले तेरे पास हृदय था आज जेब में पैसे हैं ।
हाँ पहले तेरे पास हृदय था आज जेब में पैसे हैं ।
पर पैसे से
बिकने को हर चीज बाजार में न आती ,
माँ के अंग बेच - बेच नई माँ नहीं खरीदी जाती ।
माँ के अंग बेच - बेच नई माँ नहीं खरीदी जाती ।
ऐ ! मानव
थोड़ी सी शर्म कर ले ,
अपनी ये सोच परिवर्तित कर ले ।
अपनी ये सोच परिवर्तित कर ले ।
ऐ ! मानव
थोड़ी सी शर्म कर ले ,
अपनी ये सोच परिवर्तित कर ले ।
अपनी ये सोच परिवर्तित कर ले ।
रचनाकार
प्रांजल सक्सेना
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